सुबह सुबह नहा- धोकर,
मैं निकली घर से बॅंट्न्कर,
चली जा रही थी मैं बनके हवा का झोका,
पर रास्तें पर इस मर्मस्पर्शी द्रश्य मुझे रोका......
रास्तें पर बिखरें थे कुछ चावल के दाने,
चिड़ियाँ लगी थी उन्हे अपनी चोंच में दबाने.....
इतने में वहाँ पहुचा एक रिक्शेवाला,
उसकी एक डाँट ने सारी चिड़ियाँ को उड़ा डाला,
दुबला -पतला था उसका शरीर,
पिंजर से कम नही था उसका शरीर....
इधर - उधर देखने के बाद,
फिर उठाने के लिए चावल बड़ाया उसने अपना हाथ........
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चेहरें पर अजीब सी निश्चइन्तता,
अजीब सा उत्साह...
चावल पाने से ही आया था शायद उसके चेहरे पे निखार,
चलो हुवा एक बार के खाने का इंतेज़ांम..
आया हो शायद उसकें मन में बस एक यही विचार.....
छोटे अँश में ही सही पर दिखाता है ये हमारे देश का हाल,
हाल बेहाल......
ना जाने कब बदलेगी यह सूरेते बेहाल....
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अरें अपने घर भरने वाले नेताओं,
कुछ इनकी तरफ भी ध्यान बँटाओ,
नयी योजनायें ,नयें संसाधन ,
कुछ इन लोगो के लिए भी लागू कारवओ,
ताकि इनके घर भी रहें खुशहाल.....
और बदलें भारत का सूरते हाल.......
अर्थ से परीपूर्ण इस दुनिया में अपने जीवन का अर्थ (उद्देश्य ) तलाशतें हुए..