कोई आवाज़ तो फ़लक में गूँजी थी जो ज़मीं तक आई ही नहीं
तभी तो जब भी ज़मीं पसीजी अपनेपन की खुशबू कभी मन में समाई ही नहीं
कुछ तो ख्यालों में था जो सपनों में सज कर आँखों तक पहुँचा नहीं
कुछ तो आँखों में था जो मोती बन ढलक कर दिल तक आया है
कुछ तो दिल में दबा था जो पैगाम बनके होठों पर कभी उमड़ा ही नहीं
कुछ तो लबों पर था जो पैमाना बन कर कभी छलका ही नहीं
सब कुछ पाकर भी कुछ तो है जो मैंने कभी पाया नहीं
शायद वक़्त रहते तेरा ख्याल कभी आया ही नहीं
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- Anonymous