मकड़ी के जाले अब पर्दे बन गये हैं,
फर्श पे रेंगते अब कीड़े नये-नये हैं.
घर का सामान तो तुम्ही थे बस,
चार दीवारी का ये मकान अब भी बाकी है.
उस समन्दर के किनारे को करूँ मैं क्या बयाँ,
जब तुम्हारी उँगलियों से खेलती ये उंगलियाँ.
रेत पे जो कुछ लिखा था, लहरों ने सब पढ़ लिया,
पत्थरों पे कुरेदा था जो नाम अब भी बाकी है.
गल्तियों को क्या छुपाया, दी दलील दूर की,
हाथ बांधे सर झुकाए हमने भी मंज़ूर की.
हुकूमत का दब-दबा अब कहीं और है,
पर ये हुक्मसार ग़ुलाम अब भी बाकी है.
हाथ पे रख के दुपट्टा कुछ छुपा रखा था अंदर,
तोहफा ही समझा था हमने, बाद में समझे थे खंज़र.
महसूस तो बहरहाल होता नहीं अब,
पर सीने पर निशान अब भी बाकी है.
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- PRAVEEN CHOUDHARY
Comments (5 so far )
AASHIRWAD NUNIHAR
Smitten, awesome verses :)
May 9th, 2012
Author
thank you all for appreciating....
May 21st, 2012