तू फरेबों की आब-व्-ताब रहा
सच मगर मेरा पुरशबाब रहा
ख्वाब तुझको रहा तेरा ही सफ़र
मेरी मुट्ठी में मेरा ख्वाब रहा
जुबां खामोश और मन में लगन
मुसलसल तुझको ये जवाब रहा
गुनाह लाख दबाये तूने सीने में
में मगर इक खुली किताब रहा
सह गया जुल्मोसितम सब तेरे
अब क्या बाक़ी तेरा हिसाब रहा
* आब-व्-ताब - चमक दमक
-शिव
Tags:
Sign In
to know Author
- SHIV DIXIT