1.
मैं ज़र्रा हूँ ज़मीनों का मुझे ठोकर न मारो तुम
मैं ग़र आंधी में बदला तो कहीं तुम हो न जाओ ग़ुम
मैं ढल जाऊं गुबारों में हवाओं में जो मिल जाऊं
निगल सकता हूँ सूरज को होश में आ भी जाओ तुम
गुरूरों की ये ऐंठन सब तेरी मैं ख़त्म कर दूंगा
मेरा परिचय मैं तुझको तेरे अंतिम वक़्त मैं दूंगा
मैं मामूली हूँ; मिट्टी हूँ ये मैं जानता हूँ पर
तू भी खो जाएगा मुझमें और मैं तुझमें होऊंगा
2.
मैं इक बुझता हुआ शोला दफन हूँ राख़ के अन्दर
भड़क सकता हूँ मैं फिर भी अभी तो आग है अन्दर
मिलाता क्यूं है मुझको तू ज़ुल्म की इन हवाओं से
अगर भड़का तो सब है स्वाह सब है खाक़ के अन्दर
दिखा मत तू मुझे चिंगारियां मेरी फितरत में जलना है
सितमगर तू संभल जा ग़र तुझे अब भी संभलना है
तेरी हस्ती को पल में फूँक दूं मैं खाक़ से भर दूं
अगरचे मुझको जलना है समझ ले तुझको जलना है
3.
ये माना मैं हूँ पानी का एक मामूली सा क़तरा
कभी मिल जाऊं दरिया से कभी बादल मैं हूँ उतरा
जो मिल जाऊं दरिया से तो मैं तूफ़ान बनता हूँ
अगर बादल से मिल जाऊं कहर बन के हूँ फटता
मेरी ख़ामोशी को तू मेरी कमजोरी समझना ना
तू उथला जान कर मुझको मेरे अन्दर उतरना ना
अगर अपनी पे आ जाऊं बदलता हूँ मैं तूफाँ में
कभी तूफाँ के मौसम में मेरे रस्ते गुज़रना ना
-शिव