ज़िन्दगी दब गयी बाज़ार के उधारों में
खुशियाँ बिकने लगीं जबसे इश्तिहारों में
उम्र अपनी जो औरों के नाम कर दे यहाँ
कोई मिलता है कभी सैकड़ों हज़ारों में
तुमने ठुकराया तो कोई भी चर्चा न हुआ
हम तनिक रूठे और छप गए अखबारों में
अपनी पहचान भी मैं भूल गया लगता हूँ
ज़िन्दगी ढल गयी मुख्तलिफ किरदारों में
रकीब सब हुए; सच बोलने लगा जबसे
लोग गिनते हैं मुझे पागलों, बीमारों में
-शिव
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- SHIV DIXIT
Comments (2 so far )
ASHISH CHAUHAN
Dixit Ji.. Kamaal !! Line
August 18th, 2013
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Shuriya Ashish Chauhan Sahab...
August 19th, 2013