परचम-ए-जंग मेरे हाथों में थमाने वालो
साथ तुम भी मेरे आओ; बातें बनाने वालो
इस बुलंदी से कभी नीचे भी उतर कर देखो
रात दिन ख्वाब तरक्की के दिखाने वालो
खुदा का शुक्र है दरिया से बच गया लेकिन
तुमने कसर न छोड़ी मेरी नाव डुबाने वालो
आग दिल की मेरे; दामन भी फूँक सकती है
दूर से देखो तमाशा ऐ मुझको मिटाने वालो
ये शहर सोया है मुद्दत से; कभी तो आओ
अपनी तक़रीरों से दुनिया को जगाने वालो
हमको मालूम हैं सब क़ायदे ज़माने के
अपनी राह संभालो मुझे राह दिखाने वालो
- शिव
Tags:
Sign In
to know Author
- SHIV DIXIT
Comments (2 so far )
Author
Shukriya Janab Sufi Shagird Sahab...
August 19th, 2013
awesome...(y)