जरा सा ऊँघने की कोशिश क्या की , लगा कहीं ढोल -नगाड़े बज रहे हैं ,होशो -हवस दुरुस्त करने में थोडा सा वक़्त क्या जाया किया शोर बढ़ता ही गया ,समझ आया की दरवाज़े की घंटी जोर - शोर से किसी के आने की इत्तिला दे रही है ,भुनभुनाते हुए उठ कर दरवाज़ा खोला तो देखते ही मुँह से निकला -
हे भगवन ! अभी हम इतने भी बुड्ढे ना हुए की हमारे दिमाग का फितूर हमारी आँखों के सामने दिखने लगे ,
सामने था postman , POSTMAN ? , हमने अपनी उँगलियों को अच्छा - खासा कष्ट दे कर आँखों को मला ,मन तो किया daily soaps की तरह तीन बार दरवाजा खोले तो शायद हमें ठीक -ठीक दिखाई देने लगे , हमने उन्हें नीचे से ऊपर तक घूरा और उन्होंने हमें सर से पाँव तक , नज़रों से एक दुसरे को तौलना खत्म ना होते देखकर हमने हाथ के इशारे से ही पूछा -
क्या है ?
उनको देखने के सदमे से अभी तक उबरे भी नहीं थे की उन्होंने पान चुगलाते हुए अपने थैले में से एक लिफाफा निकाला और पान की पीक थूकने के लिए अगल - बगल निगाह दौडाते हुए कहा -
चिट्ठी है !
हैंsss चिट्ठी ? अगर मनमोहन सिंह बोल पड़ते तो भी हमें इतना आश्चर्य न होता जितना चिट्ठी सुन कर हुआ , सोचा - कौन निगोड़ा है जो इस इ-मेल के जमाने में हमें चिट्ठी लिखने की जहमत उठा रहा है।
खैर ,कुछ भी कहो , वो नीला - नीला सा लिफाफा हमारी हथेलियों को गरमाई और दिल को सुकून से भर गया , postman को विदा कर हमने लिफ़ाफ़े को अल्टा - पल्टा , भेजने वाले का नाम देखकर तो मन बल्लियों उछलने लगा ,ये हमारे उन छोटे से चचेरे भाई की थी जिनके एक लफ्ज़ "गिल्ली -डंडा " ने आठ खोपड़ियाँ एक साथ अपनी तरफ घुमा ली थी और आठ जोड़ी आँखें अपने कोटर में से बाहर बस चल ही पड़ी थी।
हुआ कुछ यूँ था की हम चचेरे -तयेरे भाई बहन मिल कर पूरे नौ थे और सब आस - पास की ही उम्र के थे ,साथ शैतानियाँ करते साथ ही सोते ,एक बड़ा सा पलंग था ,जगह के लिए क्या धींगामस्ती हुआ करती थी और अगर कहीं से बुआ कमरे में आ जाती तो ना जाने कहाँ से पलंग पे इतनी जगह आ जाया करती थी की नौ और सो जाए , हम हैरानी से पलंग को घूरा करते थे।
आपने कभी किसी को जामुन खाते देखा है ,आप कितना भी कह लो हम आपसे शर्त लगा सकते हैं की नहीं देखा होगा . वो एक कटोरे में काले -काले मोटे नगीने से ,देख भाल कर गोल - गोल घुमाते हुए उन्हें उठाना ,फिर धप से नमक में घुसाना और लो वो गया गप से मुहँ में।
हम सारे बुआ की बड़ी - बड़ी अंगूठियों और कत्थे से लाल हुई उँगलियों के बीच बेचारे- सहमे से जामुन पे निगाह जमाये रखते , जामुन बुआ उठाती और मुहँ हमारे खुलते ,जैसे ही वो निरीह सा जामुन बुआ के मुहँ में अलोप होता हम सबके दिमाग लगते दौड़ने - बैडमिंटन , नहीं , नहीं , टेनिस ,
उधर जामुन एक गाल से दुसरे गाल की सैर करता और इधर हमारी आँखें। अचानक किसी कोने से आवाज़ आई "गिल्ली - डंडा " हैं ssssssss … सुनते ही आठ खोपड़ीया आवाज़ की दिशा में घूम गई ,आठ जोड़ी आँखों ने घूरा ,अगर आँखों से कत्ल मुमकिन होता तो आज हम सारे भाई - बहन पता नहीं कहाँ होते ,उहं छोड़ो परे ,परदे के पीछे से झाँकती आधी आँख से बाद में निपटेंगे ,बुआ पे वापस ध्यान लगाया।
गुठली चटखारे के साथ बाहर निकले उससे पहले हम भाई - बहनों की शर्त लग जाती की कितनी दूर गिरेगी ,गुठली की दूरी नापने के चक्कर में हमारी तो जायदाद ही लुट गई वरना सच्ची आज करोड़पति तो जरुर ही होते।
हम भी क्या किस्सा ले कर बैठ गए ,अब इस उमर में यादों को जिंदा करने के सिवाय कुछ और है भी नहीं , हम तो खाली हैं, आप लोग क्यूँ मजमा लगाये बैठे है , चलिए उठिए, किस्सा सुन लिया न अब जरा हमें चिट्ठी पढने दीजिये ,
और सुनिए ,
अब ये न पूछियेगा की चिट्ठी में लिखा क्या था .