निशब्द अधरों पे मेरे निसर्ग स्वर का परिवर्तन,
आमंत्रण है तुम्हे प्रिये नित प्रेम प्रकाश करूं अर्पण.
कहीं कूक पपीहा दे रहा विरह का अपनी अभिवेदन,
मुझ निष्चल की साँसें अविरत मांगे तुमसे अविरल जीवन.
श्याम घटा के विलयों में केशों का तुम्हारे परिचित्रण,
नभ की नीरव ख़ामोशी सा तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन.
विस्तृत तुरंग तरंग सदा तुमसे पुलकित सारा जीवन,
इस लोक में तुमसे प्रेम बने अमृत महिमा का दिग दर्शन.
आमंत्रण है तुम्हे प्रिये नित प्रेम प्रकाश करूं अर्पण ...
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Comments (2 so far )
PRATAP SINGH
so lovely !
September 18th, 2013