हर बच्चा हज़ारो छोटी छोटी तमन्नाओ की पोटली में बंधा होता है. पोटली खुलते ही, मन्न की तितलियाँ इधर उधर मंडराने लगती हैं, संसार के फल फूल से तरल हासिल करने को बेताब. ऐसी ही एक पोटली में बंधा एक छोटा सा लड़का, अलग दिखते लोगों में अलग सा दिखता, पहली बार सीनिअर की उपाधि पे मुस्कुराता अपनी नयी कक्षा में बैठा था. नए लोग, नए विचार उसकी पोटली को थोड़ा और समेटने पे मजबूर कर रहे थे. क्या पता, लोग उसे पसंद न करें? क्या पता, लोग उसका मज़ाक उरायें? वह कुछ न बोलता, थोड़ा सहमा सा, लोगो की आँखे तलाशता बैठा था.

फिर हुई शुरुआत, एक अलग सी दुनिया की. एक अलग सा व्यक्तित्व, अपनी ओर आकर्षित करता हुआ, कक्षा में घुसा. मुंह पे एक तेज के साथ, उन्होंने मेरी ओर देखा, और मैं मुस्कुराया. जवाब में मुस्कराहट मिली. इस तरह मेरी मुलाकात पहली बार मेरी हिंदी टीचर मंजू मैम से हुई. और वो पोटली धीरे से खुल गयी.

कहने को तो हिंदी की शिक्षिका, लेकिन जितनी उनसे मैंने हिंदी नहीं सीखी, उस से कहीं ज्यादा ज़िन्दगी सीखी है. हमारी हर बेवकूफी पे हँसना और उन्हें सुधारना. पाठ के अन्दर का पाठ पढ़ाना, और न जाने कितने ही तरीको से उन्होंने मेरे जैसे कई बच्चो को ज़िन्दगी दी है.

कई साल बीत गए उन्हें देखे हुए लेकिन जीवन के धागे की हर गाँठ पे जब भी पीछे मुड़ के देखता हु तो मंजू मैम उसी तरह मुस्कुराती हुई दिखाई देती हैं. और मैं एक मीठी सी याद लिए कहता हूँ, “शुक्रिया मैम, शुक्रिया मुझे बनाने के लिए. विश्वास रखिये आप का ये बेटा बहुत आगे जाएगा. कभी गुरु दक्षिणा नहीं दे पाया, अपने कुछ छोटे से नादान से शब्द आपको समर्पित करता हूँ.



बढ़ते हुए रास्ते में कुछ याद आता है.

जागती हुई आँखों में कुछ ख्वाब आता है,

एक पुराना रास्ता जहां चल चुके हैं,

हँसते हुए आँखें भी मल चुके हैं,

हर एक खामोशी पे शब्द आप के मिले,

कमज़ोर होते को बल आप से मिले,

बढ़ते हुए रास्ते में कुछ याद आता है,

आपका हाथ अब भी सर पे साथ आता है….

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