wanted to post this letter but .......
बाबा ,
दस साल की नौकरी के बाद आपको फोन किया था की मैं रिजाइन करना चाहती हूँ ,वापस आना चाहती हूँ ,याद है मुझे बाबा की जब मैं घर से निकली थी तब आपने कहा था की "क्या इसी दिन के लिए पढाया लिखाया था कि सब चूल्हे में झोंक दो ", आप मेरी इस नौकरी से खुश नहीं थे .
आपने कहा हम इस बारे में बाद में बात करेंगे फिलहाल तुम छुट्टी ले कर घर आ जाओ ,घर शब्द सुन कर कितना सुकून मिला था बाबा मुझे ,मैं अपना थोडा सा सामान ,कुछ ताने ,कुछ उल्हाने ,और कुछ फटी हुई यादें ले कर घर आ गई थी ,शायद अपनी सहूलियत के लिए भूल गई थी की सब कुछ हमेशा एक जैसा नहीं रहता .
सबने स्वागत किया था ,एक दिन माँ ने अकेले में धीरे से कहा --"भाई ने कहा है उससे कहिये थोडा एडजस्ट करना सीखे "अचानक ही भाई के साथ मिल कर कभी की हुई शैतानियाँ कंही छुप गई और मेरी मुस्कराहट थोड़ी सी और गहरी हो गई जब माँ ने कहा -नौकरी तो तुम्हे यंहा भी करनी पड़ेगी .माँ से कह नहीं पाई की बाबा ने तो घर बुलाया था
बाबा आपके घर के ,आपके परिवार के लोगों के चेहरे पर जगह की कमी की तकलीफ दिखने लगी थी ,अच्छा ही हुआ न बाबा की मैं रिजाइन करके नहीं आई थी .
मेरे वापस लौटने के फैसले पर किसी ने कोई सवाल क्यों नहीं किया ,आपने भी तो नहीं किया न कोई सवाल बाबा ,सबकी नज़रों में कितनी समझदार हो गई थी मैं ,सबने एक सुकून की सांस ली थी की अब सब कुछ पहले जैसा ही हो जायेगा ,हो गए सब अपने रोज़ के कामों में मस्त .
बाबा अब तो मैं भी समझदार हो गई हूँ ,जानती हूँ अब जब भी फोन करुँगी तो आप सब क्या सुनना चाहेंगे
"सब ठीक है बाबा ,हाँ खुश हूँ मैं इस नौकरी में "