ठंड की चादर ,
कोहरे की धुंध
नजर नहीं आता दूर तक,
कही कुछ अंजान सा था
मन में ,
न गले तक आता
न जुबान से फिसलता ,
एक कसक बन अन्दर
एक कोने में दिल के,
समेटे लाखों यादें
बंद रहता ,
दर्द कहीं तो था
पर किस मोड़ पर ,
एक शांत सी आवाज
जो न गूंजी कभी,
मन की थी
मेरे मन की ,
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- KARUNESH KISHAN
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thanks to all...
July 15th, 2013