शरारत भरी नज़रों ने तुम्हारी
आँखों में मेरी हया भर दी
एक ही पल में इन बेवफा नैनों ने
मेरे दिल की रज़ा बयाँ कर दी
होठों को दबीचे दांतों तले
मैं मुस्कान को तैश से छुपता हूँ
रोक लो पकड़ हाथ आज मुझे ज़रा
इसी उम्मीद में मुड़ के दूर जाता हूँ
पाकर करीब तुमको, खुद को यूं खो रहा हूँ
माला कोई टूट कर बिखरती है जैसे
पत्तों पर पड़ी ओस फिसलती है जैसे
सूरज की ओट में बर्फ पिघलती है जैसे।

बर्फ(भाग 2).......

खुद को खोने के डर से
तुमसे मुड़ कर दूर हो जाता हूँ
सूरज और बर्फ की कहानी
बन जाने से सिहर जाता हूँ

पर मुझ पतंग की डोर
तुम आगे बढ़ थाम लेना
पिघल जाऊं तुम्हारे करीब तो
नदी बन गले लगा लेना ।

Sign In to know Author