कहाँ जाना चाहता था कहाँ जा रहा हूँ
क्या चाहता था जिंदगी में और क्या हो गया
मंजिल की ओर चला था और हर दिशा रस्ते ही रस्ते
खो गयी रौशनी जो मेरे साथ थी
अब तो राहों पर भरा अंधकार है
मंजिलों की तरफ क्या देखूं
जब हर कदम का परिणाम ठोकर है
हर सुबह उठ कर रास्ते खोजता हूँ
शाम खाली हाँथ आती है ,
रात मैं अंधकार ओढ़ कर सो जाता हूँ !!
Comments (2 so far )
Author
thanks at least i got one reader.
August 22nd, 2013
awesome