मुट्ठी बंद करने से,
हाथ से फिसल जाती हैं रेत..
मैंने तो हाथ खोल दिये थे,
फिर भी एक कण ना बचा सपनों का..
एक आंधी सी आयी थी,
जो उसे उड़ा ले गई..
हां वो आंधी समय की ही थी..
और मैं अब तक,
हवा में उड़ते उन कणों के इंतजार में हूं..
कभी तो हवा की दिशा बदलेगी...

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