अंतर्द्वंद में ,
जीवन के रण में ,
मैं खड़ा हूँ अकेला ,

एक अनिश्चित सी दिशा ,
बिन मंजिल का रास्ता ,
कोन डगर मेरी ,
कोन ही आसरा मेरा ,

बस चल चला आया हूँ ,
जीतता हारता ,
कभी मुस्काता कभी रोता ,
एक पल आह है ,
तो अगले पल ही मुस्कान :)
बस यही है जीवन का नाम !!!

मुस्काता सोचूं कि कहाँ जाऊं ,
इस डगर या उस डगर,
वहां पहुंचूं या वहां ?
वो राह या ये राह,
वो साथी या ये मंजिल ,

यहाँ तक भी आया ही हूँ,
मंजिल को पाया ही हूँ ,
हर पल में खुद को नया पाया मैंने
हाँ , हर पल से सिखा मैने,
पल पल में खुद को ढूंढा मैंने,
हाँ, जीतते हारते जीवन में ,
खुद को पाया मैंने !!!

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