सोचा था, तुम्हारे दर्द में मैं
और मेरे दर्द में तुम जागो सारी रात..
मैं तो आज भी जाग रहा हूं,
सोचकर कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं?
क्या तुम भी जागती हो?
सोचा था कि तुम्हारी खुशियों
में तुमसे ज्यादा मैं खुश होउंगा..
इसी भ्रम में आज भी खुश रहने की कोशिश करता हूं..
बिछड़कर मुझसे क्या तुम भी खुश रहती हो?
सुना था समय हर दर्द को भुला देता है..
मैं अब इसी भ्रम में हूं
कि मेरे घाव भी भर गये हैं..
क्या तुम्हें भी अब दर्द नहीं होता है?
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- PRAVEEN CHOUDHARY