तेरी दुनिया से अच्छी हैं
मेरे कमरे की दीवारें,
मैं तेरी दुनिया से जब मायूस होकर
थक और टूट जाता हूँ; इसी कमरे की दीवारें मुझे
अपने आगोश में कुछ यूं छुपाती हैं,
के माँ जैसे बच्चे के सर पे ओढनी रख दे।

वो बिस्तर पर पड़ा तकिया के जिसपे
माँ के कंधे की तरह
में सर रख के रो भी लेता हूँ।

वो माँ की गोद के जैसा मेरा प्यारा सा बिस्तर है
के जिस में मुहँ छुपा के मैं
दुनिया से हो के बेगाना,
चैन से सो भी सकता हूँ।

मेरे कमरे का आईना है माँ की आँखों के जैसा
मुझे हिम्मत दिलाता है,मुझे इतना बताता है
के थकना मत तू रुकना मत,

पोंछ के आँसू आँखों के भुला के सारे ग़म अपने
निकल पड़ता हूँ मैं फिर से
तेरी मुश्किल सी दुनिया मैं .....

-शिव

Tags: Poetry

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