नमी की तलाश में भटक रहा हूँ,
शोर-ए-दरिया सुनने तरस रहा हूँ,
कुछ बूंदों की प्यास है,
ऐ अश्क तुझसे दरख्वास्त है,
बह जा कि आज रोने को जी चाहता है,
ये खामोशी क्यों इख्तियार की है,
सालो से मुझसे न कोई बात की है,
रुका था जो हर बात के लिए,
उन बातों को आगोश में लिए,
बह जा कि आज रोने को जी चाहता है,
बरसर-ए -ग़म नींद तुझे कैसे आई,
जागती आँखों से कैसी ये तेरी जुदाई,
पिघल जा, ये क्या रुसवाई है,
आग मेरा दामन जलाने को आई है
बह जा कि आज रोने को जी चाहता है,
न कर ग़म, तो ख़ुशी रवां कर,
तसकीन-ए-दिल आँखों से बयां कर,
रातों की बात बताने को,
इक बार दिल के बहलाने को,
बह जा कि आज रोने को जी चाहता है,
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- Anonymous