फ़ोन पर आ रही आवाज को सुनते ही श्यामली के चेहरे पर खीज उभर आई थी। किसी तरह अपने को संयत रख, उसने जवाब दिया था -

”मैडम, आज तो पहुंच पाना मुश्किल है, कलकत्ता से कुछ गेस्ट आ रहे हैं।“

”जी हां, वे लोग दो-तीन दिन रूकेगें, उसके बाद जरूर पहुंचूंगी। प्रिया की मुझे चिन्ता रहती है। कैसी है वह ?“ -

फ़ोन रख, श्यामली ने साड़ी के आंचल से पसीना पोछा था। विस्मित माधवी उसकी ओर देख, पूछ बैठी थी -

”दीदी, आज हमारे यहां कलकत्ता से गेस्ट आ रहे हैं?“

”अरे और क्या कहती? रोज-रोज उस लड़की के पास बैठ-बैठ बोर हो गई हूँ। कभी तो लगता है, कहीं मैं भी उसकी तरह अपंग न हो जाऊं।“

”पर दीदी पहले तो तुम वहां जाने को उतावली रहती थीं।“

”तू नहीं समझेगी, हां देख अगर फिर मैडम का फोन आए तो कह देना मैं गेस्ट्स के साथ कहीं गई हूं।“

”पर क्यों?“

”आज मुझे ज़रूरी काम से कहीं और जाना है, इसलिये -“

”जानती हूँ, जरूर अविनाश जी के साथ जाना होगा।“

”देख माधवी, तू वहुत ज्यादा बोलने लगी है। एक हफ्ते बाद एक्जाम हैं, पढ़ाई में मन लगा, समझी।“ अपनी बात खत्म कर श्यामली कमरे से बाहर चली गई थी।

आज सुबह ही अविनाश का फोन आया था। वेलफेयर में ”बैंडिट क्वीन“ लगी है। दोनों ने साथ जाने का प्रोग्राम बनाया था। कुछ ही देर बाद अविनाश स्कूटर से उसे लेने आया था। बाल संबारती श्यामली के मन में दुविधा सी आ गई, छोटी बहिन माधवी ज्यादा ही बोलने लगी है, पर क्या उसकी बातों में सच्चाई नहीं?

मिसेज जॉनसन से श्यामली की भेंट अचानक हुई थी। महिला क्लब द्वारा जरूरतमंदों की सहायता के लिये आयोजित मेले में मिसेज जॉनसन अपनी बेटी प्रिया के साथ पहुंची थीं। मेले में कॉलेज की लड़कियों को वालंटियर बनाया गया था। बी0ए0 के बाद बेकार श्यामली भी खाने के काउंटर पर ड्यूटी पर थी। व्हील चेयर पर आई प्रिया को देख श्यामली के मन में दया उपजी थी। इतनी छोटी उम्र में तो लड़कियां पंख लगा, उड़ती हैं और ये बेचारी -Oउसके पास पहुंच श्यामली ने प्यार से पूछा था -

”आप क्या लेंगी मिस, चटपटी चाट या मीठा रसगुल्ला?“

श्यामली की ओर बड़ी-बड़ी आंखों से निहारती प्रिया मौन ही रही थी।

”जल्दी बताइए, मिस !“

उत्तर में बुदबुदाने की चेष्टा में प्रिया के ओंठों के किनारे से लार सी निकल आई थी। उस अस्पष्ट स्वर को समझ पाना श्यामली को मुश्किल लगा था। प्यार से झुक कर उसके मुंह से निकली लार पोंछ, मिसेज जॉनसन ने श्यामली के प्रति आभार व्यक्त किया था।

”थैंक्स ! एक रसगुल्ला देंगी।“

रसगुल्ले की प्लेट थाम, मिसेज जॉनसन ने बड़े जतन से छोटे-छोटे टुकड़े कर चम्मच से प्रिया के मुंह में देने शुरू किये थे। इस प्रयास में अगर कुछ टुकड़े मुंह मं न पहुंच, प्रिया की हाथ या फ्राक पर गिर जाते तो मिसेज जॉनसन तुरन्त पोंछ देतीं। उस दृश्य ने श्यामली को द्रवित कर दिया था।

”मैडम, ऐसा क्यों?“

”माई बैड लक, बेटी।“

”क्या इसका कोई इलाज नहीं?“

ऊपर वाले के अलावा कोई नहीं। हमको पनिशमेंट दिया है वह।

”ऐसा क्यों कहती हैं, मैडम। सब ठीक हो जाएगा।“

”काश ऐसा हा पाता। तुम कौन हो, बेटी?“

”जी मैं इसी शहर में रहती हूँ। मैं भी भगवान का दिया दंड भोग रही हूँ। माता-पिता की बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई। अब हम दो बहिनें हैं। नौकरी की तलाश में हूं।“

”ओह माई पुअर चाइल्ड। अगर तुमको मंजूर हो तो हमारी बेटी को कंपनी देने के वास्ते हमारे पास एक जॉब है। हम तुमको अच्छा पैसा दे सकते हैं। तुम्हारे माफिक लड़की के साथ शायद हमारी बेटी का अच्छा टाइम बीत जाए- वैसे इसका और काम देखने के लिये आया है, तुमको सिरिफ़ इससे बात करना मांगता।“

”ये तो मेरा सौभाग्य होगा, मैडम। अगर मैं प्रिया के कुछ भी काम आ सकी तो समझूंगी मेरा जीवन सार्थक है।“

दूसरे दिन सुबह श्यामली मिसेज जॉनसन के बंगले पहुंची थीं। बड़ा सा बंगला, चारों ओर बड़े-बड़े पेड़, सामने बड़ा सा लॉन देखदेख के बिना उपेक्षित सा पड़ा था। स्पष्ट था किसी समय यह हवेलीनुमा बंगला बहुत जीवन्त रहा होगा। अब तो सामने लगे फौव्वारे में काई जमी हुई थी। नाम सुनते ही मिसेज जॉनसन बाहर आ गई थीं।

”आओ श्यामली, मैं सोच रही थी शायद तुम न आओ।“

”ऐसा क्यों सोचा ,मैडम?“

”एक जीवित लाश के साथ समय काटना बहुत कठिन काम है न?“

”आप ये क्या कह रहीं हैं, मैडम?“ श्यामली सिहर उठी थी।

”ठीक कह रही हूं, बेटी। मैं प्रिया की मां हूं, पर उसकी मौत की आहट हर पल सुनती हूं। न जाने कब, किस समय वह उसे दबोच लेगी और वह मुझे छोड़ जाएगी।“ मिसेज जॉनसन का स्वर कांप उठा था।

”प्रिया के साथ क्या हुआ है, मैडम?“

”डुशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी“ कहते हैं इसे। शरीर की हर मांसपेशी, हर अवयव धीमे-धीमे अपनी मौत पाता जा रहा है और मेरी परी सी उड़ने वाली वच्ची अवश मौत के शिकंजे में जकड़ती जा रही है। अच्छा हुआ, उसके पापा ये तकलीफ़ देखने के पहले ही चले गए।“

”हे भगवान, इस नन्हीं सी जान को इतनी बड़ी सज़ा?“

”जानती हो श्यामली, जिस दिन प्रिया के पांवों ने काम करना बंद किया था उस, दिन मैं बहुत रोई थी। तब प्रिया ने मुझे बच्चों सा सहारा दिया था -“

”मम्मी दुनिया में कितने लोगों के पांव नहीं होते। मैं अपने हाथों का इस्तेमान तो कर सकती हूं न? देखना मैं कितनी अच्छी-अच्छी पेंटिग्स बनाऊंगी, कविताएं लिखूंगी। मेरा टाइम तो फुर्र से उड़ जाएगा।“

- प्रिया की पेंटिग्स में आकाश उड़ती चिड़ियां, फूलों से अठखेलियां करती रंग-बिरंगी तितलियां हुआ करती थीं। कविताओं में जीने की चाहत होती थी, पर अब पिछले एक साल से उसके हाथ अपनी सामर्थ्य खो चुके हैं, मुंह से ठीक बात नहीं निकल पाती – मेरी बच्ची जो झेल रही हैं, मैं सह नहीं पाती।“

रूमाल आंखों से लगा मिसेज जॉनसन सिसक उठी थीं। उस समय ढेर सारी ममता उस लड़की के लिये श्यामली के मन में उमड़ आयी थी। मिसेज जॉनसन की पीठ पर हाथ धर उसने सांत्वना देते मन में निश्चय किया था, जब तक संभव होगा, वह पल-पल मौत के पास जा रही लड़की का जीवन सुखद बनाने का प्रयास करेगी।

शुरू-शुरू में श्यामली को प्रिया की बात समझ पाना कठिन लगा था, बाद में वह उसकी अस्पष्ट भाषा समझने लगी थी। प्रिया के हाथ अपनी सामर्थ्य खो चुके थे, पर उंगलियों में अभी जान बाकी थी। प्रिया के हाथ को उठा मेज पर रख देने के बाद उंगलियों में रंगीन पेंसिल अटका, सफेद कागज पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचने में सहायता करती श्यामली, स्वंय चित्रकारी सीखने लगी थी। धीमे-धीमे सप्रयास प्रिया की रेखाओं में कुछ चित्र उभरने लगे थे। बड़े से झाड़ीनुमा पेड़, जहां अव्यक्त सा सन्नाटा पसरा होता, उनके पीछे डूबते सूर्य के चित्र पर काले पेन से प्रिया ने मुश्किल से ”अवसान“ लिखा था। श्यामली स्तब्ध रह गयी। नहीं, प्रिया को वैसी मौत नहीं चाहिये। उस दिन से श्यामली ने अच्छी-अच्छी कहानियां-कविताएं पढ़कर प्रिया को सुनानी शुरू की थीं। प्रिया के चेहरे पर जैसे रंग-बिरंगी आभा बिखर जाती। एक दिन तो एक कहानी के शीर्षक पर उसने श्यामली से अस्पष्ट शब्दों में बात भी की थी।

”कहानी – का – टाइटिल अच्छा है।“ श्यामली का अधिकांश समय प्रिया के पास गुजरता। उसके प्रयासों ने मिसेज जॉनसन को नया जीवन सा दे दिया था। बेटी के मुंह का बदलता रंग उन्हे आशान्वित कर जाता, हालांकि बड़े से बड़े डाक्टर पहले ही बता चुके थे, इस बीमारी के बाद फिर ठीक होने की उम्मीद बेकार है। झूठी आशा का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।

अपने घर में श्यामली की सुख-सुविधा के लिये मिसेज जॉनसन विशेष रूप से सजग रहतीं। अच्छे से अच्छा भोजन, उपहारों के अलावा हर महीने साढे तीन हज़ार. रूपयों का पैकेट थमाकर भी जैसे उन्हें संतोष न होता। बातों-बातों में श्यामली जान चुकी थी। शहर के नामी वकील की एकलौती बेटी मर्जीना के पास शादी के लिये ढेरों आफर्स थे, पर राबर्ट जॉनसन ने उसे मुग्ध किया था। प्यार-दुलार में पली मर्जीना का बचपन जितना ही सुखद था, विवाहित जीवन उससे कम नहीं था। राबर्ट उस पर जान छिड़कते थे। प्रिया का जन्म दोनों की जीवन की सबसे बड़ी खुशी थी। लेस लगी फ्राक पहिने प्रिया कितनी प्यारी लगती थी। राबर्ट उसे अपने सपनों का साकार रूप कहा करते थे। बेटी के अलावा राबर्ट का दूसरा शौक कार-रेसिंग का था। हमेशा रेस में आगे रहने वाले राबर्ट एक दिन कार- रेस में कार दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उन सबको अकेला छोड़कर, दुनिया छोड़ गए थे। रूपयों-पैसों का अभाव मिसेज जॉनसन ने कभी नहीं जाना, पर पति का विछोह उन्हें तोड़ गया।

किसी तरह अपने को सहेज उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटी की परवरिश में लगा दिया। गाज तो तब गिरी जब स्कूल की दौड़ में सबसे आगे दौड़ने वाली बेटी के पावों में हल्का दर्द होना शुरू हुआ। घर में मालिश से लेकर र्डॉक्टरी दवाई का कोई फायदा न होता देख, प्रिया को जब स्पेशलिस्ट को दिखाया गया तो परिणाम सुन, मर्जीना सामान्य न रह सकीं थी। प्राणों से प्रिय बेटी को कैसे बताएं तिल-तिल मरना ही उसकी नियति थी? उस समय मर्जीना को सोने की दवाइयां खिलाकर जीवित रखा गया था। होश में आते ही वह बिलख पड़ी थीं, तब दसवीं क्लास की छात्रा प्रिया ने उन्हें सम्हाला था। मां की नींद की बेहोशी में अपनी बीमारी उसने जान ली थी।

”मम्मी उन लोगों की सोचो जिनके पास दवाइयों के लिये भी पैसे नहीं होते, उनके बच्चों या घरवालों को अगर ये बीमारी होती है, तो वे किस तरह मुकाबला करते हैं? उनसे तो हम बहुत अच्छी स्थिति में है न?“

प्रिया की बात पर मर्जीना दंग रह गयी थी। बेटी के सामने वह फिर कभी नहीं रोई थीं। बेटी भी कैसी, खुद अपनी बीमारी पर ढेरों किताबें पढ़ डाली थीं। अगर वह मना करती तो वह हंस देती ”मम्मी जो सच है उसे नकारा नहीं जा सकता। उसे स्वीकार कर, साहस के साथ मुकाबला करना चाहिए। मैं मौत से नहीं डरती। ये देखो मैंने कल कविता लिखी है।“ अनजानी मौत के प्रति कोई भय नहीं, साक्षात्कार की ऐसी ललक? लेकिन पंक्तियों के बीच कहीं जीने की चाहत झलक उठती।

”ऐ मौत, मैं तेरी गोद में सोने वाली हूं,

तुझे देखा नहीं, पहचाना नहीं,

पर मम्मी की आंखों में, झांकते पाया है।

कब सामने आकर, आगोश में ले लेगी,

नहीं जानती, बस कुछ दिन और

जीने की मोहलत दे दे,

मम्मी बहुत अकेली हो जाएंगी,

उन्हे यूं छोड़कर जाना,

अच्छा नहीं लगता।“

वो पंक्तियां पढ़ती श्यामली की आंखें भर आयी थीं। यूं सबके सामने हिम्मती दिखने वाली प्रिया, रातों में खुली आंखों के साथ न जाने कितना जागती थी, ये बात शायद मिसेज जॉनसन भी नहीं जानती थीं।

मिसेज जॉनसन की मदद से श्यामली को एक फैक्ट्री में रिसेप्शनिस्ट की जगह मिल गई थी। उनकी इस अनुकम्पा के लिए वह उनके प्रति और भी ज्यादा आभारी थी। सुबह आठ बजे से एक बजे तक ड्यूटी के बाद वह सीधी प्रिया के पास पहुंच जाती। उसकी प्रतीक्षा करती प्रिया उसे देख खिल सी उठती।

इधर पिछले दो महीनों से श्यामली का परिचय अविनाश से हुआ था। अविनाश उसकी फैक्ट्री में इन्जीनियर था। अविनाश का साथ श्यामली की आंखों में ढेर सारे सपने जगा देता। अब श्यामली कभी-कभी बहाना कर, प्रिया के पास जाना टाल जाती। मिसेज जॉनसन इस बात का बुरा नहीं मानती थीं, पर अविनाश के सान्निध्य की चाहत के साथ प्रिया के लिये श्यामली के मन में जगह कम से कम होती जा रही थी। अक्सर अपनी अनुपस्थिति के बाद जब वह प्रिया के पास पहुंचती तो उसकी आंखों में बढ़ रही उदासी देखकर भी वह अनदेखा कर जाती। जल्दी-जल्दी कोई कहानी या कविता सुना, वह थक जाने का बहाना कर घर लौट जाने को वह उतावली रहती।

आज सुबह भी वही हुआ। दो दिनों से श्यामली प्रिया के पास नहीं गई थी। फ़ोन पर मिसेज जॉनसन ने उसे बुलाया था -

”न जाने आज प्रिया क्यों ठीक नहीं लग रही है। तुम आ जातीं तो शायद उसे अच्छा लगता।“

पिछले कुछ दिनों से माधवी भी उसे बार-बार टोकती रही है -

”दीदी तुम प्रिया के पास नहीं गई? पहले तो तुम ऐसा कभी नहीं करती थी?“

”मेरी अपनी भी जिंदगी है। उसके पास बैठने से अच्छा किसी के मरने पर मातमपुर्सी को चले जाओ।“ श्यामली झुंझला उठती।

”छिः दीदी, आज तुम जहां हो, उसके लिये मिसेज जॉनसन का एहसान मानना चाहिए।“

”उनका एकसान चुकाने के लिये क्या अपने को बेमौत, मौत के हवाले कर दूं? मैने भी उनके लिये जो किया कम लोग कर सकते हैं। तू ही बता मेरे अलावा कोई और इतने दिन वहां पहले कभी टिका था?“

माधवी को चुप करा, श्यामली अविनाश के साथ कहीं घूमने निकल जाती। कभी अकेले में वह अपने को जस्टीफाई करती, नहीं वह गलत नहीं कर रही थी। आखिर उस निस्पंद, शब्द लड़की के पास घंटो बैठना क्या उसके अलावा किसी और के लिए संभव होता? उसने प्रिया को अपना साथ देकर, मिसेज जॉनसन पर कम एहसान नहीं किया है, श्यामली की अपनी भी जिंदगी है, उसे वह एक मरने जा रही लड़की के नाम होम नहीं कर सकती। घर में कलकत्ता से आ रहे मेहमानों का बहाना बना, श्यामली अविनाश के साथ दो दिनों के लिये बाहर घूमने चली गई थी। जाते-जाते मिसेज जॉनसन को सूचना दे गई थी, आवश्यक कार्य वश उसे अपने अतिथियों के साथ कुछ दिनों के लिये शहर से बाहर जाना पड़ रहा है। वापिस लौटते ही वह प्रिया के पास पहुंचेगी। हमेशा की तरह मिसेज जॉनसन ने उसके झूठ को सच मान स्वीकृति दी थी। निश्चय ही अन्दर से वह, श्यामली के प्रति वह बेहद आभारी थीं।

दो दिन बाद खिले चेहरे के साथ घर में कदम रखते ही गम्भीर रूप से उदास माधवी ने सूचित किया था -

”बधाई दीदी, अब तुम हमेशा के लिये स्वतंत्र हो – “

”क्या मतलब?“ श्यामली चैंक सी गई थी।

”क्या – आ – आ?“ श्यामली की आंखे विस्फारित थीं।

”उसके अंतिम समय मिसेज जॉनसन तुम्हें खोज रहीं थीं। उस दिन भी तो तुम्हे बुलाया था न दीदी, जब तुम अपने सम्मानित अतिथियों की वजह से वहां जा नहीं सकीं।“ माधवी के स्वर का व्यंग्य झेल पाना, श्यामली को संभव नहीं था। कटे पेड़ सी पास की कुर्सी पर बैठ गई थी।

मुश्किल से हिम्मत सहेज, श्यामली मिसेज जॉनसन के घर पहुंची थी। प्रिया के कमरे में काले वस्त्रों मे बैठी मिसेज जॉनसन को पहिचान पान कठिन लग रहा था। दो दिनों में वह उम्र के दस वर्ष लांघ चुकी थीं। श्यामली की आहट पर आंखे उठा देखतीं मिसेज जॉनसन के चेहरे का शोक और ज्यादा गहरा गया था।

धीमे से उनके कंधे पर हाथ धर, श्यामली मौन खड़ी रह गई थी, सांत्वना का एक भी शब्द निकाल पाना असंभव लगा था। मिसेज जॉनसन ही बुदबुदाई थीं –

”उसके आखिरी टाइम तुम नहीं थीं, बहुत अकेला फ़ील किया उसने।“

”आई एम सॉरी मैडम, मैं नहीं जानती थी -“

”आई नो बेटी, इसमें तुम्हारा कोई फ़ाल्ट नहीं – तुमने उसे बहुत अच्छा टाइम दिया है। आई एम ग्रेटफुल टू यू। प्रिया भी तुमको बहुत प्यार करती थी। जाते टाइम तुम्हारे लिये बर्थ डे कार्ड बना रही थी – कुछ लिखकर भी छोड़ा है -“

अपनी जगह से उठ, मिसेज जॉनसन ने प्रिया की टेबल से कार्ड और एक नीला कागज श्यामली को थमा दिया।

नीले कागज पर बड़ी मुश्किल से लिखे गए अस्पष्ट शब्द थे-

”मेरे मरने के बाद,

फूलों के गुलदस्ते मत लाना,

क्योंकि,

हॅंसते फूलों को रूलाना ,

मुझे अच्छा नहीं लगता -“

उमड़े आ रहे आंसुओं के साथ श्यामली ने अपना बर्थ डे कार्ड पढ़ा था –

विश यू आल दि बेस्ट श्यामली – दी
Author: Dr. Pushpa Saxena

Tags: Tragedy

Sign In to know Author