वक़्त के कलुषित थपेड़ों में,
कई दौर गुज़रे कोई समझा नहीं मतलब मेरे अल्फाज़ों का,
जमाने से नैन कभी भीगे नहीं,
और कोई समझा नहीं कारण मुस्कुराने का,
बेपर्दा है जिंदगी की कहानी मेरी मगर,
अफ़सोस कोई समझा नहीं राज पुरानो को,
यारों की महफ़िल आज भी सज रही,
मगर आज दिल ही नहीं जश्न मानने को..

Tags: Philosophy

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