जब मैं प्यार में डूबा होता हूँ
और उस दोपहरी में जब चाँद की बातें करता हूँ
तो वो सब सच मान लेती है
वो ये भी मान लेती है कि मैं एक दिन तारे का एक टुकड़ा
उसके लिए जरूर ला दूँगा
ये उस वक़्त का यथार्थ है
और मुझे उसकी यही बात सबसे अच्छी लगती है
हर वक़्त का अपना सत्य
अपना यथार्थ होता है
जब मैं कॉलेज के बगीचे से बाहर आकर
खुद पर एक नज़र दौड़ता हूँ
और याद करता हूँ अपने बाप को लिखे उस ख़त को
जिसमे मैंने लिखा था
"पूज्यवर पिताजी,
सदर प्रणाम,
मैं यहाँ मन लगाकर पढ़ रहा हूँ"
तब जो शर्म आती है
वो एक अलग यथार्थ है
फिर शाम में कुछ दोस्तों के साथ
दुनिया भर की बातें कहता हूँ
कि कल का बीयर कहाँ से आएगा
कल की सिगरेट कहाँ से आएगी
तो दोस्तों का ये कहना की
कल जब आनी होगी आएगी
एक अलग यथार्थ है
कुल मिलकर देखा जाये
तो हम अजीब तरह की आशाओं के बीच
खुद को उस से भी ज्यादा अजीब तरह से खेते जा रहे हैं
वो जानती है कि चाँद की बातें बेमानी है
वो जानती है कि तारे का वो टुकड़ा कभी नहीं आएगा
मैं जानता हूँ कि अगले ख़त में भी मैं 'मन लगाकर' पढ़ता रहूँगा
बीयर आ ही जाएगी
सिगरेट मिल ही जाएगी
कल अपने नीयत समय से फिर आएगा
हम उसी बगीचे में फिर चाँद को याद करेंगे
हम शाम फिर मजलिश जमायेंगे
वो झाग फिर से फैलेगी
वो धुआँ फिर से उठेगा
ये हमारा नहीं बदलने वाला यथार्थ है