सीमा पर शत्रु ने हमको
देखो फिर ललकारा है
सीमा की रक्षा करने को
फिर जननी ने पुकारा है

वीरों की धरती को फिर से
ज़रूरत है बलिदानों की
बहुत हो चुकी है बर्बादी
शूरवीर के प्राणों की

बहुत हुआ है वचन- याचन
अब और नहीं समझाना है
विकल्प नहीं कोई समझौता
अब आदेश सुनाना है

धीरज को कायरता समझा
अब समय है सच बतलाने का
वर्षों से सूखी है तलवार
अब समय उसे नहलाने का

हुआ परिक्षण कई बार धैर्य का
अब तलवार चलाना है
नहीं है चिंता अब प्राणों की
बस शत्रु पर चढ़ जाना है

अब पुनः वही क्षण आया है
भीषण हुंकार सुनाने का
विजय पताका फहराने को
प्रचंड तेज दिखलाने का
अब पुनः वही क्षण आया है
निश्चयकर जीत दिलाने का

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