हाँ मैं बदसूरत हूँ मगर जैसा हूँ बेहतर हूँ ,
तुझे होगा गुमां अपनी खूबसूरती का,
मुझे तो नाज है अपनी संजीदगी का,
तू होगी मल्लिका - ए - जहाँ मेरी जान मगर
मैं शहजादा हूँ अपनी माँ के आँगन का ,
क्या खूब रौशनी है तेरे महफ़िल में ,
पर तेरे मन के जहाँ में भरा अँधेरा है,
मुखरा तेरा चाँद सा पर दिल पर तेरी छाया है,
हम तो बदसूरत ठहरे शिरत बरी सादी है,
हाँ मैं बदसूरत हूँ मगर जैसा हूँ बेहतर हूँ
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- JITENDRA SINGH