मालूम नहीं ये एहसास क्या है और कैसा है
जब पास होते हो तो सुकून सा लगता है,
मगर तेरे जाने का ख्याल आते ही मेरी धरकने बढ़ जाती क्यूँ है ,
मेरी इन धरकनो की दस्तक तुझतक न जाने क्यूँ पहुंचती नहीं
मेरी जुबां खामोश सही पर दिल पुकारता हर लम्हे में तुझे सौ दफा है,
हाँ मालूम है मुझे तेरे जाने का दर्द मुझे ताउम्र होगा
मगर तेरे जख्मों को सिल सकूँ मैं इतनी ख़ुशी मेरे पास नहीं,
कहते हैं की खुदा भी इंसानों से क्या खूब खेलता है न
हमें उनका नशा लगा देता है जो जाम कभी मेरे पैमाने में मिला ही नहीं,
अल्फाजों में तुझसे जिक्र न कर सका बेसब्री अपनी
मेरी धधकते सांसों की शिश्कियां कभी सन्नाटे में तू सुनता नहीं.....
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- JITENDRA SINGH