मन थका सा था, बेड पर लेटे हुये दिमाग में कुछ चुलुबुला सा ख्याल आया | छत के तरफ देखते हुए खुद से बातें करने लगा | ओह आज फिर दिक्कत कर रहा हैं, पता नहीं कहाँ से ये परछाई आ जाती है | सामने बैठे हुए साथी का कान खड़ा हो गया | बेचारे नये आये थे | क्या ???? वो बार बार पूछने लगे | तो मैंने यूँ ही कह दिया कि कल पूजा करना होगा | इस परछाई को हमने पिछले ही महीना पंडित बुला कर बांध दिया था, लगता है वो अपने बंधन से आजाद हो गया है | उनका चेहरा का रंग उड़ गया था |
मैंने विश्वास दिलाने के लिए एक फ़ोन पर पूजा सामग्री लाने की बात भी कर ली | और तभी बिजली कट गयी | इन्वर्टर से बल्ब तो जुड़ा था, लेकिन पंखा नहीं तो वो बंद हो गया | और मैंने इशारा कर दिया की देख रहें हैं न ये परछाई कभी भी पंखा को रोक देता है | उनका प्रशन था कि अब पंखा कब चलेगा | उत्तर दे दिया था मैंने कि जब परछाई का मन होगा | वो अपने जनऊ को पकड़ जाप करने बैठ गये | और तभी बिजली आ गयी | पंखा चलने लगा, मैंने उनके तरफ देखा और कहा की आप में बहुत शक्ति है |
वो बताने लगे कि मैं भूत प्रेत से नहीं डरता | अब बारी आयी चाय बनाने कि तो फिर से उन्हें उसकाया | जाइए ऊपर छत पर किचन है ले आइये चाय बना कर | चेहरे का रंग देखने लायक था | फिर भी हिमात जूटा कर वो छत पर गये चाय बनाने बस मैंने नसीहत दे दी कि कुछ दिखे तो बस हल्ला कीजियेगा ... छत से कूद मत जाइएगा ||||