देखिये ये संघर्ष हमेशा चलता रहता है | संगठन बिना धन के चल नहीं सकता और धन देने वाले अपना हिस्सा मांगेंगे | पता नहीं कब तक यूँ ही भीख मांगता फिरूंगा -- हाँ कमा तो अब सकता नहीं तो अनंत काल तक--
मुद्दा की बात पर आते हैं | पटना मोहल्ला सभा में धन की कमी थी, संगठन का कार्यक्रम करने में बहुत दिक्कत होती थी. एक दिन यूँ ही एक साथी के मदद से हम एक शुभचिंतक के पास पहुचें | धनवान थे और सामाजिक कार्यकर्ता तो मदद करने को तैयार |
खैर धन आया लेकिन साथ में और भी बिन बुलाये समस्या भी | धन आते ही हमारे अपने ही साथी विचलित होने लगे | क्या करें और क्या नहीं ये समझ नहीं सका लेकिन बैलेंस बनाने में समय बीतने लगा | और जो होता है वही हुआ | वो संगठन के इंटरनल बातों को समझ नहीं सके | सही में लाखों रुपया खर्च करते के बाद वो चुपचाप कट लिए | हाँ हम जहाँ थे वहीं रह गए | भूखे पेट चिन्तन करते की ये हमारे संगठन का इस्तेमाल कर लेंगे |
सही बताऊँ मैंने हर कोशिश कर ली, मैडम से लेकर अपने संगठन के साथी तक को समझाने के लिए लेकिन समझा नहीं सका - कौन सुनता है किसको जरुरत है, अंत में हार थक कर चुपचाप बैठ गया | वो वही हैं सामाजिक कार्य में धन खर्च करते हुए, हम वहीं हैं रोड पर बौआते हुए, और जिन लोगों के कारण ये नये साथी हमारे संगठन में नहीं टीक पाए वो भी वहीं है कुछ कुछ करते हुए ||
आज सालों बाद हम चिंतन कर रहें हैं, हम उस प्रेस रिलीज़ को याद कर रहें हैं जिसमें वो अपना नाम चाह रहें थे, हम धन लेने की बाबजूद उनको प्रेस में स्थान देने को तैयार नहीं हुए, हम बीच का रास्ता निकालते रह गए
और ऐसे आये हुए साथी एक एक कर दूर होते गए | हम हम हैं, हम संगठन के लोग हैं | हम सिर्फ और सिर्फ चिंतन कर सकते हैं | हम संगठन के लोग राजनीतिक पार्टी के तरह बैलेंस नहीं बनाना जानते हैं | हम गरीब हैं और अपने से गरीब को देख कर खुश होते हिं |||