नाता जोड़ा न था मैंने तुझसे कभी
फिर ये डोर हमारे दरम्यां कैसी है,
तुझे सोचा नहीं तन्हाई में कभी
फिर जुबाँ पे मेरी जिक्र तेरी कैसी है,
हाँ ये सच है कि मैं मनमौजी हूँ-
कभी किसी हूशन पे भरोसा मैं करता नहीं,
फिर तेरी हर बात मुझे लगती है सच्ची
तुझपे ये ऐतबार दिल को कैसी है,
जानता हूँ कि थोड़ा नादां हूँ मैं
भावनाओं में बह जाया करता हूँ,
महसूस होती है जो मौजूदगी तेरी
न जाने एहसास ये कैसी है,
लोग कहते हैं मुझसे मैखाने जाम में नशा बहुत है,
मगर तेरी मदभरी निगाहों ने पिला दिया जो जाम,
जिस्म में रूह तलक छाई ये मदहोशी कैसी है,
यूँ तो खुदी से बेपनाह मोहब्बत है मुझे,
न जाने फिर ये फिक्र तेरी कैसी है,
नाता जोड़ा न था मैंने तुझे कभी
फिर ये डोर हमारे दरम्यां कैसी है।।।
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- JITENDRA SINGH