एक एहसास जो नामुकम्मल होकर भी खुद में ही मुकम्मल होती है
है ये नाजुक मोम सा
मगर चट्टानों से बनी पहाड़ भी गिर देती है,
हो शामिल ये जिसकी जिंदगी में
मुसाफिर होकर भी वो नुमाइंदगी मंजिल की करता है,
है रेत का सागर ये मगर
ईंट से ज्यादा मजबूत घरौंदा ये बनाता है,
बयाँ हो न सके भले जुबाँ से
आँखों से हृदय पुकार सुन जाता है,
समझने-समझाने को शब्द कम हैं इस जहाँ में
वो समंदर - ए- एहसास इश्क़ कहलाता है।
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- JITENDRA SINGH