नज़रें छीन कर चश्मा पकड़ा रहे है लोग,
ना जाने कौन सा नज़ारा दिखा रहे है लोग ||

 

जिंदगी तुम्हारी और डोर उनका ,
ढील भी उनकी  और जोर भी उनका ,
फिर भी तुम्हारी ही बेवफाई का डंका बजा रहे है लोग ,
ना जाने कौन सा नज़ारा दिखा रहे है लोग ||

 

लगा कर  खुशियों पर पह्ड़ा यूं ही इतरा रहे है लोग ,
और कहते है बड़ी ही जिम्मेदारी निभा रहे है लोग ||
डर उनका, शोर उनका ,मूछ उनकी अभिमान उनका 
और पंक्ति में तुम्हे लगा रहे है लोग ,
ना जाने कौन सा नजारा दिखा रहे है लोग || 

 

है परवाह तो क्यों नहीं उस ईकाई की परवाह करें ,
जिन्हे मिला कर समाज बनता है,
बेवजह समाज से इकाई को डरा रहे है लोग ,
ना जाने कौन सा नजारा दिखा रहे है लोग ||

 

अब क्या सोचा है ,मजबूरियों ने जकड रखा है ,
हथियार डाल दिए है हमने  और  सर क्लम को रखा है ,
अब्ब बस नाटक न करना  कि  तुम  लोग मेरे  अपने हो  ,
छीन कर मेरी नजरें भला कैसा अपना बना रहे है लोग ,
न जाने कौन सा नजारा दिखा रहे है लोग||

 

जागना है तो अब जागो नहीं तो काला चश्मे में जिंदगी को रंगीन बना लो ,
कर दो अपनी आजादी अपनी सोच उनके नाम ,
फिर न कहना बड़े आज़ाद खयालो वाली हो ,
फिर न रखना किसी से उम्मीद की वो  आज़ाद खयालो वाला हो |
जो चश्मा मिला है उस से ही देखो फिर , तुम्हारी नजरें अब तुम्हारी न रही ||

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