सुबह सुबह वो दिख गयी थी | हरे दुपटे में लिपटी, भींगे बालों के लट को हाथों से संभालती वो मंदिर के तरफ जा रही थी | एक छोटा सा फूलडाली और लोटकी लिए हुए हर आने जाने वालों पर एक उड़ती नजर डाल लेती थी | न चेहरे पर कोई मुस्कराहट, न ही होठों पर लाल लिपस्टिक, न कोई मेकअप | अपनों में खोई सी वो एकटक मंदिर में प्रवेश कर गयी |
घंटी की आवाज ने मेरा धयान खींचा था | उसके मूंदे हुए पलकों को मेरे नजरों ने भी देखा | सौंदर्य की देवी के समान वो कुछ देर मंदिर में विचरण करती रही | लेकिन पता नहीं कब मेरी भी नजरें फिसल कर दूर राहों को ताकने लगी थी | सहसा अगरबत्ती की सुगंध ने मेरा धयान भंग किया | फिर उसकी पायल की झनझन कानों से टकराते हुए उसकी उपस्थिति का संकेत दे गयी | अनायास ही नजरों का मिलान हो गया |
दो पल सुकून से मैंने उस सौंदर्य के प्रतिमूर्ति को देखा ही था की उसके पायल की आहट ने उसके वापस जाने का संकेत दे दिया | काटों के भातिं चुभने वाली कंकड़ों से भड़ी कच्ची रोड में उसे खाली पैरों चलते देखना मेरे लिए बहुत कष्टदायी हो रहा था | जैसे उसके कदम कंकड़ों पर पड़ती मेरे दिल में एक सिहरन सी होती | हर कदम पर मेरा मन मचलता की अपना चप्पल उसे दे आऊं, लेकिन अफ़सोस बाइक को भी अभी ही आना था | चलने के लिए कानों में एक कर्कश आवाज टकराई और न जाने उसके पायल की आवाज कहाँ गुम हो गयी |