कुछ यादें सूनी सी, कुछ यादें भूली सी|
वो अदना सा बचपन, वो खिलता सा आँगन।
वो डगमगाते नन्हे कदम, कुछ तलाशते दो नयन |
रह-रह कर गिर जाना चलते हुए, रेंगकर जाना मम्मी के हाथों में |
वो रस्सी का झूला पेड़ों पर, चिड़िया चहकती मुंडेरों पर |
वो किरणों को छूना हाथों से, सूरज का झांकना पेड़ों की छाओं से |
तितली पकड़ना बागों में, कुछ कहानियां रातों में |
सारे तारे गिनना उँगलियों पर, चाँद से रेस साइकल पर |
वो मम्मी की लोरियां रातों में, पापा की नक़ल बातों में |
वो तशवीरें तलाशना बादल में, सारा जहां पा जाना माँ के आँचल में |
कागज़ की नाव चलाना पानी में, मछली तलाशना गली के पानी में |
पहिए के पीछे भागना दूर तक, भौरे तलाशना सुदूर तक |
दादी को बना लेना अपना घोडा, और परेशान करना बहुत थोड़ा |
वो निष्फ़िक्री बचपन की यादों में, वो झगड़ना बातों-बातों में |
ये कुछ बातें हैं जो बन गई मीठी यादें हैं ||
-ओंश