अब लगता है की सारे अरमां अधूरे ही रह जाएंगे |
पता नहीं हम उन फिजाओं में कब वापस जा पाएंगे |
लगता था की शायद कुछ हकीकत कुछ ख्वाब मिलकर पूरा कर लेंगे अरमान,
पर पता नहीं अब कम्बख्त हम सो कब पाएंगे |
लगता था की वक़्त का थामकर दामन,हम भी शायद दूर तलक उड़ पाएंगे,
पता नहीं था की हम इसके लिए, पंख कहा से ला पाएंगे |
यूं वक़्त का बहाव हमसे मुकर जायेगा पता न था,
पता न था की इन पलों को हम हथेली में कैद न कर पाएंगे |
शायद अभी हम अपने नसीब को ना मोड पाएं,
पर कुछ पलों बाद शायद अपने अरमां फिर से पूरा कर पाएंगे ||
- Onsh
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- TUSHAR TURKAR