आदत डाल ली है तुम्हारे न होने की

तुम्हे खोने की

तुम्हारे लाज़वाब होने की


मेरे छोटे से कमरे में आवाज़ नही गूंजती तुम्हारी

तुम्हारी दस्तक पहचानने से नकार देता है 

मेरे कमरे का दरवाजा 


आदत डाल ली है अकेलेपन की

एका़त में चिंतन की

तुम्हारी अप्रस्तुति की


अपने आप को अपनी बाहों में समेट लेती हूँ 

चादर के सिरे भीगते हैं 

तुम्हारा काॅलर नही


आदत डाल ली है अपने सिर पे हाथ फिराने की

तुम्हारा स्पर्श भुलाने की


हमारे बीच की दूरी

अब मेरे तुम्हारे बीच का दरमियान हो गया है


आदत डाल ली है तुम्हारी मजबूरी की

तुम्हारी सबूरी की

तुम्हारी बेपरवाही की
आदत डाल ली है

Sign In to know Author