आगे सब अंधकार हैं
चला था घर से कुछ हासिल करने को
निकला था शहर से कुछ अंजाम पाने को
करता था उम्मीद हर रोज नए उजाले की
जब जाना आगे सब अंधकार हैं
आँखे चौधियाती थी शहर की रौशनी में
सपने पलते थे ऊँची इमारतों में
एक पल में ये सब धराशायी हो गए
जब जाना आगे सब अंधकार हैं
की जब कोशिश मेने पाने की इनको
छुट गए सब पीछे चाहा था जिनको
छुट गए वो रिश्ते छुट छुट गया वो प्यार
जिन पर था मेरा विश्वास
दिखते हे अब सब अपने कुछ धुंदले से
करते हे अब बाते कुछ हलके से
जब मैने जाना आगे सब अन्धकार हैं
वो धुन्दलापन अब गहराता जा रहा हैं
वो रिश्ता अपनों का छूटता जा रहा हैं
वो सपने उच्ची इमारतों के ढहते जा रहे हैं
वो चकाचौध अब डूबती जा रही है
जब मेने जाना आगे सब अन्धकार हैं
Tags:
Sign In
to know Author
- पीयà¥à¤· चाैरे