शादी में ! बारात नाश्ता कर चुकी थी तभी बहनोई ने बुलाया | ना ना करते हुए गया था उनके पास | कानों के पास आकर कहते हैं अब सतर्क रहने की जरुरत है | चिंतित हो मैं इधर उधर देखने लगा कि भई क्या बात है | तो फिर कहते हैं लौंडा सब है | क्या ? दिमाग़ चकरा गया था मेरा | अब तो बिहार में शराब भी नहीं मिलता तो फिर क्या हो गया इन्हें ? तो कहते हैं घर की महिला सब आने वाली है | माजरा समझ आ गया था मुझे ? बेचारे मिडिल क्लास वाले जो ठहरे | उनका चिंतित होना लाजमी था और उनकी दृष्टि सब तरफ के माहौल को भाप रही थी |                                   

 

                   समझें | ख्याल रखना है ! क्यों भाई मैं कौन होता हूं ख्याल रखने वाला ? 18 साल प्लस है, पढ़ी लिखी सब ग्रेजुएट है, इन छोटी-मोटी बातों का खुद ख्याल रख सकती है, और रही बात प्यार मोहब्बत का तो इसमें हम टांग अड़ाने वाले कौन होते हैं ? हम तो ठहरे राइट टू चॉइस का पुरजोर समर्थन करने वाले और हमीं को ये सब सजेशन मिल रहा था | खैर बातों को इग्नोर कर मैं उनके चुंगल से निकल चुका था | लेकिन बेचारे का उचित संवाद गलत व्यक्ति से हो गया था |

                

                  इधर मेरा दिमाग क्रिया प्रतिक्रिया के मारे मरा जा रहा था | ऐसा नहीं था कि वह मुझे जानते नहीं, मेरे कामों को देखा नहीं, मेरे बारे में सुना नहीं, फिर भी मुझसे वही घिसीपीटी दकियानूसी बातें | ये मुझे पच नहीं पा रहा था | दिमाग गुस्से से तमतमा रहा था लेकिन मर्यादा का ख्याल, गुस्सा पर पानी डाल उसे ठंडा करने का जीतोर प्रयतन में लगा था | मर्यादा का बंधन ही तो था | नहीं तो कसम ऊपर वाले की ! किसी दोस्त या अपने बाप भाई ने भी यह कहा होता तो सारा आसमान सर पर उठा लेता | उसी वक्त समझा देता अपनी विचारधारा |

 

                खैर उनके इस इस छोटे से राय ने मेरे पूरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया था | जी हां गुस्सा से शरीर कांप रहा था | रह रह कर मन में आता कि इन मुद्दों पर चर्चा मुझसे क्यों की गयी ? लेकिन मर्यादा का बंधन मुझे सवाल करने से रोक लिया करती | वो बहुत क्लोजली मुझे ओबजर्वे किया करते थे फिर भी मुझे समझ नहीं पाए, इसका दुख दिल को कचोट रहा था | यही सब सोचते शादी का मजा खट्टा हो गया था | कितनी बार दिल ने कहा कि जाकर बता दूं लेकिन चुपचाप मर्यादा के बंधन को लाघना उचित न समझ पीछे हटता रहा | मानसिक द्वंद और पीड़ा झेल अपने आपको हौसला देते रहा | बस इस बात की संतुष्टि रही कि घंटो से बेसब्री से कहानी लिखने के लिये कोई पात्र दूंढ रहा था वो मिल गया था |  

 

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