क्या होगा ? आज तक कुछ नया हुआ है क्या ? तिरंगा में लपेटा हुआ एक लाश आयेगा | पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगेंगे | हम भी सड़क पर उसी नारेबाजी के भीड़ में शामिल रहेंगे | इधर किसान खेत में आत्महत्या करते रहेंगे और उधर उनके जवान बेटा सीमा पर शहीद होते रहेंगे | लेकिन फिर भी हम नहीं बोलेंगे | यह अँधा राष्ट्रवाद का दौर देश को कहाँ ले जाएगा ये हम थोड़े न सोचेंगे | चूँकि सब यही कर रहे हैं तो हम भी यही करेंगे |
जी हाँ मैं भी नहीं बोलूंगा । क्यों बोलूँगा मुझे भी तो वोट का फसल काटना है । दो चार किसान का बेटा शहीद हो ही जाये तो क्या फर्क पड़ता है ? वोट के खेल में हमारा भी जमीर मर गया है | फिर मैं भी वही बोलूंगा जो दुनिया बोलती है, भीड़ का एक अंग बन कर पकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए मैं भी सड़क पर मिलूंगा दिखावा करते हुए, सबसे तेज मेरा ही नारा होगा, सबसे ऊँचा तिरंगा मेरे हाथ में ही होगा, गला फार मैं सबसे आगे चिल्लाता हुआ मिलूँगा ।
लेकिन क्या आजतक इन सबसे कुछ बदला है ? तो फिर वही दोहराया जायेगा जो होता आया है | फिर कुछ महीनो बाद एक और लाश तिरंगा में लपेटा हुआ आएगा सीमा से | एक और माँ पछार खा गिर जायेगी, एक और पत्नी अपनी चूड़ियां फोड़ अपने हाथों से अपना सिंदूर नोंच फेंक देंगी | एक और बाप को हजारों लोगों का सांत्वना मिल रहा होगा, एक और शमशान कुछ घंटो के लिये गगनचुंबी नारे से गुंजयमान होगा । लेकिन जब चिता की राख ठंडी हो जायेगी, तब बस अँधेरे कमरे में सिसकियाँ बचेंगी, उजड़े हुए घर आँगन मिलेंगी, सदमे से अस्त व्यस्त परिवार मिलेगा, बूढ़े माँ बाप की जर्जर काया और जवान बेटा की यादों में सुख चुके आखों की आंशु |
लेकिन फिर भी मैं बता देता हूँ मैं नहीं बोलूंगा ! कदापि नहीं बोलूंगा ! हाँ इंतज़ार करूँगा तब तक जब फिर से तिरंगे में लिपटे हमारे जवान भाई का लाश न आ जाये । तब फिर गला फार कर चिलाउंगा, पकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाउँगा, अखबार में फोटो खिचबाउंगा | जी हाँ यही तो आप भी करते हैं और यही मैं भी करूँगा | बचपन से यही सब तो देखते देखते आज बड़ा हो गया हूँ | कम से कम देशद्रोही तो नहीं कहलाऊंगा ! देशद्रोही तो नहीं कहलाऊंगा !