आप क्या बताइयेगा | आपका चेहरा बताता है | आपके दिलो दिमाग में आग लगी हुई है | Frustration, कुंठा ने आपके सारे liberals thoughts की हवा निकल दी है | हर शब्द आपके दिल की कुंठा को बयां करती फिरती है | तन मन की बैचनी और सामाजिक रीती रिवाज की जकड़न ने आपकी liberalism की बैंड बजा कर रख दी है | हर जगह बेचारे इसको explain कर कर के थक चुकें हैं | हताश निराश हैं फिर भी अपनी व्यथा को छुपाने की बेजान कोशिश की निरंतरता को बनाये रखें है |
Liberal थे ही | एक बेटी हुई | फिर अप्सर बने तो और ज्यादा liberal हो गये | समाज से टकराने की हिम्मत आ गयी | खूब टकराये र भाई ! रीती रिवाज को जवानी में challenge किया | बेटा बेटी में अंतर नहीं होता है भाई, हर जगह यही बोलते “ भैया एक बेटी है तो क्या हुआ यही मेरा बेटा है ” लोगों के बताते फिरते | बेटी की महता सुनाते | अपने को foregin culture का वाहक बताते | लेकिन ये blind and hollow thought कब तक चलता है हुजुर ! “आह तो आह ही ठहरी” तो निकलनी ही थी | और किसी विचारक ने सच ही कहा है कि “ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है “ तो समाज hollow thoughts से कहाँ चलता ये भूल गये थे | फिर समय के थपेड़ों ने साहब को जमीन पर पटक ही दिया | समाज से कट न सकें तो सामाजिक ताने बाने में ही अपना उद्धार दूंढने में व्यस्त हो गये |
अभी भी मन बैचैन है | एक लड़का को adopt करने की चाह ने नींद हराम कर रखा है | न जाने कितनी रात जग कर पत्नी से इस मुद्दे पर discussion कर चुकें हैं | हर गरीब कमजोर का मेधावी बेटा को नजरें तौलती फिरती हैं | अपने अमीरी का दंभ उसे adopt कर अपना बनाने का बेजान ख़वाब देखती रहती है | लेकिन गाड़ी कभी पत्नी के बातों से अटकती हुई आगे भी बढती है तो सामाजिक ताने बाने में उलझ कर रह जाती है | कुछ न कर पाने का frustration चेहरे पर साफ़ झलकता है | लेकिन करें भी तो क्या ? खुद भी तो strong dicission नहीं ले पा रहें हैं और न ही अर्धांगिनी का साथ मिल पा रहा है तो फिर मानसिक भटकाव से नाता सा बन गया है | जीवन बिना केवट के नाव के तरह यूँ ही गुजर रहा है बेजान, बेस्वाद | लेकिन नजरों की खोज जारी है, यूँ ही जारी रहेगा जिंदगी भर !