बात कुछ अधिक पुरानी है शायद सालों पुरानी पर जेहन में आज भी ताजा है। रामबाबू का दूधवाला उन्हें सालों से दूध दे रहा था और कालोनी के बहुत सारे घरों को वह दूध देता आ रहा था.
दूधवाले को सब गुड्डू भैया कहते हैं थे, वो इंतना इमानदार था या कहो की इतना बेईमान था की दूध में पानी तो नहीं मिलाता पर भैस के दूध में गाय का दूध मिलकर भैस के प्योर दूध के पैसे वसूलता था और सबने भी उसकी इस बईमानी पर स्वीकृति की मोहर लगा दी थी. जब दूध में अधिक मिलावट का अंदेशा होता था तो रामबाबू की पत्नी उसे दूध बंद कर दूसरा दूध वाला लगवाने की सैकड़ों बार धमकी दे चुकी थीं जिसके कारण कुछ दिन तक दूध बहुत ही अच्छा मिल जाता था।
हाँ... तो बात पुरानी ही है पर आज भी यादों के पन्नों पर उसकी इबारत की चमक फीकी नहीं पड़ी है।
एक दिन गुरुवार के दिन ( यहाँ गुरुवार का बाजार लगता है) गुड्डू भैया ने एक भैस खरादी और वो बाजार से उसे घर ले जाने लगे उस भैस ने कुछ दिन पहले ही एक बछड़ा पैदा किया था, समस्या ये थी की भारी भरकम भैस को कैसे ६-७ किलोमीटर की दूरी तय करवाई जाये। बाजार में रामबाबू सामान खरीदने गए थे और इस दौरान वे गुड्डू भैया को ये सब करते हुए देख रहे थे तब उन्होंने उससे पूछ ही लिया कि वह कैसे भैस को ले जायेगा...??
तो इस पर उसने कहा ,” । अरे बाबूजी...! भैस के बच्चे को एक इन्सान मोटर साइकिल पर ले जायेगा और ये भैस अपने बच्छे के पीछे पीछे चलती चली जाएगी।"
वे उसकी बात सुनकर हँस पड़े,” अरे यार...गुड्डू ये कैसे हो सकता है...?” और उनके दिमाग में यही सवाल था की एक जानवर भला ऐसे कैसे कर सकता है।
गुड्डू भैया उनकी हँसी से ताड़ गया की वे क्या सोच रहे थे । तब उसने कहा," बाबूजी ! ये भैस भी तो एक माँ है देखना अपने बच्छे के पीछे कैसी दौड़ी चली आएगी..."।
और सच में जैसे ही उसके बच्छे को एक आदमी ने मोटर साइकिल में अपनी गोद में लेकर बैठाया और मोटर साइकिल चली वो उस मोटर साइकिल के पीछे दौड़ लगाने लगी
ये एक माँ की ममता ही तो थी...,जो उसे मजबूर कर रही थी की वो अपनी संतान के पीछे जाये.
ये लघुकथा "joy of giving" के लिए लिखी है, माँ की ममता केवल देना जानती है तो इस “daan utsav” से बड़ा मौका तो कोई हो ही नहीं सकता.
उपरोक्त लघुकथा मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित है.
वीणा सेठी