एक कोने में बैठी, इतराती अपनी नवीनता पर

छूने पर कड़कती फड़कती हुई सी

आज तक मुझसे यूं दूर रही है

आज क्यूँ बड़े प्यार से वह घूर रही है



कुम्हलाया हुआ सा मुख मेरा देख

खिलखिलाती, बल खाती, सब शर्म हया फ़ेंक

वह पहला स्पर्श महसूस भी न कर पाया

मैं तिलमिलाया, घबराया, कसमसाता गया



हर नज़र पर नज़रें चुराने की चाह है,

अपना साथ सदा का नहीं, पर ज़रूरत बेपनाह है,

आज न बनाया उसे अपना तो खुद से खो जाऊँगा

संसार तो हंसेगा ही, खुद को क्या मुंह दिखाऊंगा



बस एक रात की बात है, अन्धकार कुछ समय का है

यह अनिद्रा, यह घुटन, फल उसी भय का है

आ जा के आज पन्नो में मिल जाऊ तेरी

आज तो पढ़ ही लूँगा, इंजीनियरिंग की किताब मेरी

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