मैंने कल्पना के संसार को संवरते देखा है
देखा है नीले आकाश में स्वर्णिम रवि की किरणों को
और उन किरणों के चमक से मोतियों को चमकते देखा है
पंकज भी अपने सौंदर्य बिखेरने को है तत्पर
उन किरणों के स्पर्श से उसे भी खिलते देखा है
मैंने कल्पना के संसार को संवरते देखा है
देखा है निशा की अद्भुत बेल में चन्द्रमा को
और फिर चुपके घटाओं में छुपते देखा है
घिरे देखा है इस अम्बर को घटाओं से
और फिर उनमे चांदी की रेखाओं को देखा है
मैंने कल्पना के संसार को संवरते देखा है
मैंने देखा है सूरज के तेज प्रताप को
और जीवनमय धरा को उसमे जलते देखा है
देखी है फिर घने मेघों का गर्जन
और फिर वर्षा में धरा को मचलते देखा है
कल्पना के संसार को संवरते देखा है
कल्पना जिसमे समायी है प्रकृति की सुन्दरता
कल्पना जिसमे बसी है नदियों की शीतलता
और शीतल समीर को वृक्षों से खेलते देखा है
और इनके सानिद्ध्य में खुद को देखा है