वास्ता नही रखना.. तो फिर.. मुझपे नजर क्यूं रखता है...
मैं किस हाल में जिंदा हूँ.. तू ये सब खबर क्यूं रखता है ;
बात अगर फूलों की.. कलियों की.. गुलशन की करता है...
अपने लब्जों में फिर.. छिपाकर तू पत्थर.. क्यूं रखता है ;
गर कुनबा ही समझता है तू.. इस पूरी दुनिया को ...
फिर ज़हन के कोने में.. सदा अपना घर क्यूं रखता है ;
तू तो कहता है.. मैं दुखाता नही.. दिल किसी का भी ...
फिर खुदा तुम्हारी दुआओं को.. बेअसर क्यूं रखता है ;
किसी को जीतने की कोशिश.. तू करना नही चाहता ...
बता फिर हारने का मन में अपने.. डर क्यूं रखता है ;
इश्क इबादत है खुदा की.. जिसे तुमने ठुकरा दिया...
फिर रोजाना दर पे जाकर.. उसके सर क्यूं रखता है..."
Tags:
Sign In
to know Author
- ARAK VATSA