बात 1998 की है. मैं अहमदाबाद हवाईअड्डे पर पदस्थ था और एअरपोर्ट कॉलोनी में रहता था. एअरपोर्ट कॉलोनी में आने से पहले मैं चांदखेडा इलाके में रहता था और इस वजह से बहुत सारे ओएनजीसी वाले लोग मेरे मित्र थे. एक दिन मेरे एक मित्र जगपाल सिंह जी, जो कि ओएनजीसी में थे, का फोन आया. जगपाल जी मोदीनगर के रहने वाले थे और मेरे से दस साल बड़े होने के कारण मेरे बड़े भाई की तरह थे. उन्होंने बताया की उनके कोई गुरूजी आने वाले कल किसी फ्लाइट से दिल्ली जाने वाले हैं वो उनके लिए वी आई पी रूम में बैठने की व्यवस्था और 5-7 लोगो के टर्मिनल बिल्डिंग में प्रवेश की सुविधा चाहते हैं. मैंने कहा कोई दिक्कत नहीं है आप कल सुबह आ जाईए दोनों काम हो जायेंगे.
सामान्यत: मैं एक दिन छोड़ कर एक दिन दाढी बनाता हूँ और अगला दिन दाढी बनाने का था. मैंने सुबह-सुबह शेव किया और दौड़ लगाने चला गया. जब मैं लौट कर आया तो एअरपोर्ट कॉलोनी के मेरे घर A-24 के बाहर एक कार खडी थी. मैंने रिबोक के सफ़ेद स्पोर्ट शू और काला ट्रैक सूट पहना हुया था. मेरा क्लीनशेव्ड चेहरा पसीने से दमक रहा था और सांस फूली हुई थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जगपाल जी और बराबर वाली सीट पर किरणपाल सिंह जी बैठे हुए थे. पिछली सीट पर कोई गुरूजी और साथ में कोई अन्य व्यक्ति थे. मैंने पिछली सीट पर उड़ती सी निगाह डाली और अपने मित्रो से निवेदन किया कि आप एअरपोर्ट चलिए मैं अपनी यामाहा से आ रहा हूँ.
मैं कपडे बदल कर एअरपोर्ट पहुंचा. गुरूजी से मिलने वाले बहुत सारे लोग थे. सबको तो अन्दर ले जाना सम्भव नहीं था. 5-7 मुख्य-मुख्य लोगो को बिल्डिंग में प्रवेश दिलाया गया. गुरूजी वृद्ध थे और व्हील चेयर में थे उनके साथ उनका एक स्थायी शिष्य था जो हर समय उनके साथ रहता था. बातो बातो में पता चला की गुरूजी का आश्रम शिमला हिल्स में कसौली के पास है और वो बहुत ही पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष है, मतलब उनके अनुयायियों का ऐसा मानना था. उनके स्थायी शिष्य का नाम गिरधर प्रसाद था. लोग गुरूजी का आशीर्वाद ले रहे थे, अपनी समस्याए बता रहे थे गुरूजी आशीर्वाद और समाधान दे रहे थे आदि आदि..... धीरे-धीरे समय गुजरता गया, चेक-इन वगैरहा हुआ और वो समय आ गया जब उन्हें सिक्यूरिटी होल्ड में जाना था. मैंने अपने मित्रो को बताया कि वो अब इस स्थान से आगे नहीं जा सकते लेकिन चिंता ना करें मैं स्वयं गुरूजी को अंत तक छोड़ कर आउंगा.
मेरी गुरूजी में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. मैं जो कुछ भी कर रहा था वो अपने मित्रो के लिए कर रहा था. अंत में बोर्डिंग की घोषणा हुई और गिरधर ने व्हील चेयर को धक्का दिया और हम एयर साइड के गेट की और बढ़ने लगे. मैं थोडा दूर था. तभी अचानक गुरूजी ने हाथ के ईशारे से मुझे बुलाया मैं उनके पास गया और झुक पूछा जी गुरूजी? गुरूजी बोले ये नौकरी तुम्हारे लिए नहीं है तुम्हारा भविष्य फिल्मो में है. नौकरी छोड़ दो और मुंबई जाकर फिल्मो में कोशिश करो. एयरलाइन स्टाफ ने आगे बढ़ने का इशारा किया, गिरधर प्रसाद ने व्हील चेयर को धक्का दिया और गुरूजी चले गए.
जब मैं एअरपोर्ट से बाहर आया तो मेरे मित्र पार्किंग में मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. वो गुरूजी की सकुशल विदाई का समाचार जानने के लिए रुके थे. मैंने उन्हें बताया कि गुरूजी सकुशल चले गए. उन्होंने मुझे बहुत सारा धन्यवाद दिया. फिर मैंने मजाक करते हुए कहा कि
“यार तुम्हारे गुरूजी तो मेरे अच्छी-खासी रोजी-रोटी को बर्बाद करना चाहते हैं”
उन्होंने पूछा “मतलब?”
“वो जाते-जाते मुझ से कह गए हैं कि नौकरी छोड़ दो और मुंबई जा कर फिल्मो में कोशिश करो.” मेरा जवाब था
वो सब लोग एक दम गंभीर हो गए और मुझे समझाने लगे
“शर्मा जी इसे मजाक मत समझना. गुरूजी ने जो कह दिया वो पत्थर की लकीर है. फलां-फलां आदमी साईकिल पर कपडे बेचता था. गुरूजी ने आशीर्वाद दे दिया आज उसके चार कपडे की मिले हैं.” जगपाल जी ने समझाया.
“अरे ये तो छोडो फलां आदमी की चाय की लारी थी. गुरूजी के संपर्क में आने के बाद आज उसकी दो बड़ी बड़ी होटल हैं.” किरण पाल जी ने जोड़ा.
वो सब के सब बड़ी ही गंभीरता के साथ मुझे ये समझाने में लगे थे कि गुरूजी की बात अटल सत्य है और उस पर किसी भी प्रकार का संदेह करना पाप करने के बराबर है. उनके अनुसार मुझे तत्काल नौकरी छोड़ कर मुंबई चले जाना चाहिए और फिल्मो में प्रयास करना चाहिए.
मैं काफी देर तक सब की सुनता रहा और अंत में मैंने अपना अंतिम फैसला सुना दिया
“देखो भाई ऐसा है कि हो सकता है आपके गुरूजी कोई सिद्ध पुरुष हों. उनकी बात सच हो. लेकिन मेरे लिए मेरे जीवन की दिशा तय करने वाली शक्ति मेरी बुद्धि है ना कि किसी बाबा की भविष्यवाणी. मेरी अच्छी भली जिंदगी चल रही है और मैं किसी बाबा की बात पर विश्वास करके अपनी इस जीवन में व्यवधान नहीं चाहता. वैसे भी मुंबई में मेरे जैसे हजारो नहीं लाखो प्रतिदिन आते हैं जिन्हें हीरो तो छोडो एक्स्ट्रा का भी काम जिन्दगी भर नहीं मिलता. मुझे अपने बारे में कोई वहम नहीं है. मैं एक व्यवसायिक (Professional) इलेक्ट्रिकल इंजिनियर हूँ और वो ही रहना चाहता हूँ.”
और फिर मुझे राजकपूर की फिल्म हिना का एक डायलोग याद आ गया
“खुदा ने भी इंसान के जिस्म में दिमाग को दिल से ऊँचा मक़ाम दिया है.”
और दोस्तों इस तरह इस इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को एक सुपर स्टार मिलते-मिलते रह गया.