मेरे नोट ‘फैशन’ पर टिप्पणी करने वालो में से किसी ने भी लेख के मूल भाव को नहीं पकड़ा और चर्चा को केवल हिंदी और अंग्रेजी तक ही सीमित कर दिया. अगर आपने ये लेख नहीं पढ़ा है तो आगे पढने से पहले मेरी समय-रेखा पर जाकर मेरा 3 अप्रैल को लिखा हुआ लेख ‘फैशन’ पढ़े और उसके बाद ही आगे बढ़ें.
लेख के वो बिंदु जिन पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया:
1. वाहन चालक ने मोदीजी के काम को बढ़िया बताया और उन्हें अच्छा आदमी. उसी व्यक्ति ने केजरीवाल जी के काम के विषय में कोई टिपण्णी ना करते हुए मुफ्त में मिल रही चीजो को ही आकर्षण का बिंदु करार दिया और बाकी बातो को राजनीति कहा.
2. कन्या के लिए वाहन चालक और मैंने अपनी सज्जनता का परिचय देते हुए छाया वाली सीट पहले से छोड़ दी और ये उसे दिखाने के लिए नहीं था.
3. कन्या स्वयं देर से पहुँची और उसने हम दोनों के कुछ समय खराब किया और उसी कन्या ने अपने अमूल्य समय का हवाला देकर वाहन चालक के गैस लेने का पूरा विरोध किया.
4. जे एन यू मुद्दे पर उसने एक दम पल्ला झाड लिया उसे इसके बारे में पता नहीं है, अन्यथा क्या ये सम्भव है कि किसी पढ़े-लिखे दिल्लीवासी को जे एन यू मुद्दे की जानकारी ना हो. अभिप्राय स्पष्ट है कि उसके विचार व्यक्त करने योग्य नहीं थे. बाकी आप समझदार हैं.
5. केजरीवाल जी की तारीफ़ में उसने दो तर्क दिए; पहला उनका ओड-इवन और दूसरा वो कोई भी खतरा उठाने को तैयार हैं.
6. मोदीजी जी के विषय में वो पूर्वाग्रहों से ग्रसित थी और उनके प्रति घृणा का भाव रखती थी. मजे की बात ये थी कि उसकी ये धारणा सुनी-सुनाई काल्पनिक बातो पर आधारित थी, जिनका कोई ठोस आधार नहीं था.
अब आती है मूल बात कि क्या एक ऐसे व्यक्ति, जिस के ह्रदय में दूसरो के प्रति करुणा का भाव नहीं है, जो दूसरो के समय की कद्र नहीं करता, जो अपनी राय सुनी-सुनाई बातो से बनाता है, जो राष्ट्र विरोधी मुद्दों पर चुप रहना पसन्द करता है, की बातो को केवल इस लिए उचित मान लेना चाहिए क्योंकि उसने आधुनिक वस्त्र धारण किये है और वो आंग्ल भाषा में संभाषण करता है?
अपने चारो ओर नज़ारे घुमा कर देखे ओला कैब की टैक्सी में ही नहीं पूरे देश में ये ही चल रहा है, चाहे वो न्यूज़ चैनल्स की डिबेट हो या प्रिंट मीडिया के सम्पादकीय, अवार्ड फंक्शन्स की स्टेज हो या ट्विटर के युद्ध, बड़े बड़े विश्व-विद्यालय हो या आप के रोजमर्रा का कोई मोर्चा. ये आंग्ल भाषा और आधुनिक परिधान वाले ऐसे बाते करते हैं जैसे एक भाषा जान लेना ही विद्वान होने का अंतिम प्रमाण है.
मैं इसका विरोध करता हूँ और करता रहूँगा.