सब कुछ बदल गया लेकिन फागुन का मदहोशी वाला रंग नहीं बदला | अब होली आया तो भाभी कैसे न याद आये भला | बचपन तो बीत गया लेकिन भाभी के साथ खेली गयी होली की यादें फागुन के महीने आते ही दिल में हिलोरें मारने लगती है | एक पल के लिए लगता की फिर से उस बचपन में लौट जाऊं |
क्या गोरिल्ला होली खेलते थे रे भाई | सब भाई बहन मिल कर योजना बनाते, होली के एक सप्ताह पहले से ही उस पर अमल करना शुरू कर देते और फिर होली के दिन योज़नाबध तरीके से भाभी पर चढ़ाई कर देते | लेकिन सारा का सारा प्लानिंग फेल होने में बस कुछ मिनिट ही लगता | मेहनत से बनाया गया बाल्टी से भरा रंग कब उलट पलट दिया जाता वो पता ही नहीं चलता | फिर तो भाई हमें भी जो मिलता उसी से चढाई कर देते | हाय रब्बा आंगन का क्या बतायें पूरा वातावरण ही रंगों से सरोबार हो जाता |
अब भाभी तो ठहरी गबरू जवान | हम कहाँ टिकने वाले थे तो सब लोग लुट पिट रंगमय हो कर आते | फिर हमारा गुरिल्ला वार शुरू होता | छुप कर रंग से भरा बाल्टी ले पूरा शाम तक इंतजार किया जाता | और भाभी के नये साड़ी में लिपटा साफ़ चेहरे को देखते ही हमला बोल दिया जाता | भाभी का चेहरा भले पूरी तरह न रंगा जा सके लेकिन उनके साफ कपड़ो को रंग से सरोबार कर के हम अपनी विजय पताका लहरा ही देते थे | पर भाभी तो भाभी ठहरी तो हमारी दुश्मनी का बदला हमारे नए कुर्ते को चुकाना पड़ता और बेचारा दुसरे दिन साफ सफ़ेद होते ही भाभी के दुश्मनी की भेंट चढ़ता जाता | कुर्ते को रंगों में लिपटे देख हम आंसू तो बहाते, लेकिन हार न मानने कि प्रवृति और वो भी भाभी से हमारे शान के खिलाफ था | तो चार पांच दिनों तक हमारा रंगों वाला गोरिल्ला युद्ध समाप्त न होता और हम हर संभव कोशिश से भाभी को मात देने में लगे रहते |
आज उन सभी बाल सुलभ चपलता को याद करके हमें एक अदभुत आनंद की अनुभूति होती है | अब जब समय आगे निकल चूका है तो होली का आनंद भी कहीं खो सा गया है | गाँव कहीं छुट सा गया, यादें यादें बन कर रह गयी | भाभी के साथ खेला गया बचपन का होली एक मीठी एहसास के साथ दिल के एक कोने में दफ़न हो कर रह गया | नया सफ़ेद कुर्ता भाभी के रंगों का इन्तजार करता रहता है और साल दर साल होली आ के चली जाती है |