आइये आज आपका परिचय एक गरीब से करवाते हैं, टहलते-टहलते आज आपको गरीब की गली तक ले जाते हैं
सेठ गरीब दास शहर की जानी मानी हस्ती हैं, जिस गली में वो रहते हैं उसका नाम नयी बस्ती है
लम्बी सी गाड़ी है इनकी, १६ कमरों का मकान है, कारखाने के मालिक हैं ये, क्या खूब इनकी शान है
नौकर हैं चाकर हैं घर में, लक्ष्मी का भण्डार है, सुख-सुविधाएं सारी हैं यहाँ, ईश्वर का जैसे इनको वरदान है

सुबह का समय है, भाग रहे सब लोग हैं, सेठजी दफ्तर जा रहे हैं, घर में युद्ध जैसा माहौल है
नाश्ते का वक़्त नहीं है, खाना मीटिंग में खा लेंगे, २ मिनिट का समय मिला है, उतने में ही नहा लेंगें
अखबार पढ़ रहे हैं गाड़ी में, दुनिया भर का ख्याल है, काश इन्हें पता होता, इनकी पत्नी का क्या हाल है
पहुँच गए हैं अपने दफ्तर, सब झुक कर कर रहे प्रणाम हैं, शायद इन्हें याद होगा, इनके बच्चों के क्या नाम हैं

बाज़ार के भाव के साथ सेठ के दिल की धड़कन चलती है, इनकम टैक्स की फाइल में सेठ की जान उलझी रहती है
दिन भर दफ्तर में चिल्ला-चिल्ला कर, गला बैठ गया है, यह तो रोज़ की कहानी है, इसमें ऐसा क्या नया है?
दोपहर में एक नयी डील करने की आज ठानी है, लेकिन जीवन की डील क्या है, यह बात इन्होने कहाँ जानी है
शाम होते होते सेठ का दिल धक्-धक् करता है, महंगा वाला डॉक्टर कहता है यह तो हार्ट अटैक सा लगता है

अस्पताल में पड़े हुए हैं, ध्यान से देखो तो सड़े हुए हैं, मन में अभी भी पैसा है, जूनून न जाने कैसा है
बाहर बीवी रो रही है, बच्चो के फ़ोन की लाइन आज न जाने क्यों इतनी व्यस्त हो रही है
घर पर माहौल कुछ अलग है, नौकर जश्न मना रहे हैं, २६ जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं
दफ्तर में सन्नाटा है, बाज़ार में अफवाहों का माहौल गरम है, न जाने कैसे आज अमीरचंद के फूटे करम हैं

यह कहानी तो थी गरीब की, अब अमीर की कहानी सुनते हैं, मोटर कार में बैठ कर अमीर के बंगले पर चलते हैं
अमीरचंद मेरठ की सड़कों पर रिक्शा रोज़ चलाता है, दिन भर की मेहनत के कारण शाम तक थक जाता है
सन्नाटे भरी सुनसान गलियों से वो गुज़रता है, थके हुए कदमो से भी वो सरपट घर को चलता है
मुस्काता सा वो न जाने कैसे यह सब करता है, न मेहनत से थकता है न अँधेरे से डरता है

दिन भर में उसने पूरे १०० रुपये आज कमाए हैं, ५० क़र्ज़ की किश्त में दिए हैं, २० बैंक में जमा कराये हैं
बचे ३० रुपयों का भी उसने उपयोग करा है, १० की मिठाई जेब में है और २० का राशन लिया है
घर पर उसे आता देखकर, जैसे दिवाली आई है, बीवी उसका स्वागत करने, दरवाज़े तक आई है
बच्चे उसकी गोद में चढ़कर, कोई खेल खेल रहे हैं, अमीरचंद के हाथ मिठाई की पोटली खोल रहे हैं

रूखी-सूखी रोटी सारे मिलकर खा रहे हैं, हसी ख़ुशी के इस माहौल में सब प्रभु के गुण गा रहे हैं
छोटे से एक मकान में, सब मिलकर सो रहे हैं, बच्चे मीठी सी नींद में नए सपने बो रहे हैं
सुबह उठकर सब टूटी खिड़की से हवा खा रहे हैं, लक्ष्मीदेवी के बच्चे पास के स्कूल जा रहे हैं
अमीरचंद २ रोटी लेकर, काम पर जा रहा है, शाम को फिर मिलने वाली ख़ुशी की उम्मीद सजा रहा है

अमीर, गरीब दोनों के जीवन का दर्शन आपको कराना था
कौन है कितना अमीर, बस यही आज समझाना था

- अभिषेक ‘अतुल’

Tags: Poem, Poetry

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