जो बह रहा है सदा से दरिया
तो प्यास भी सदियोँ का सिलसिला है

ये ज़िँदगी है वही खिलौना
कभी है खोया कभी मिला है

न प्यास कम है न कम है पानी
मगर मुकद्दर का क्या करोगे

किसी को मिलती नहीँ हैँ बूँदेँ
किसी को दरिया यूँ ही मिला है

- शिव

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