'मुबारक हो मनीष जी आपको बेटा हुआ है।' ऑपरेशन थिएटर से निकलते हुए डॉक्टर स्नेहा मुस्कुराते हुए बोली। मनीष घबराहट में इधर उधर घूम रहा था, ये सुनते ही भाग कर डॉक्टर के पास पहुंच गया और बेचैनी के साथ पूछने लगा, 'डॉक्टर प्रेरणा कैसी है? वो ठीक है ना? मैं उसको मिल सकता हूँ ? उसे आप रूम में कब तक शिफ्ट करेंगे ?' डॉक्टर मनीष को देख कर मुस्कुराते हुए बोली, 'अरे मनीष जी, आप तो बच्चों की तरह बेचैन हो रहे हैं , संभालिये अपने आपको, प्रेरणा बिलकुल ठीक है लेकिन एनेस्थीसिया का असर बाकी है इसलिए अभी पूरी तरह होश में नहीं है , 10-15 मिनट्स के बाद आप उनसे मिल सकते हैं।' मनीष थोड़ा झेंपते हुए बोला 'सॉरी डॉक्टर असल में प्रेरणा ऑपरेशन से बहुत घबराती है इसलिए मुझे चिंता हो रही थी। थैंक्स फॉर योर सपोर्ट।' थोड़ा रुक कर मनीष ने दोबारा पूछा, 'और बच्चा कैसा है ?' डॉक्टर एक बार फिर मुस्कुराई और बोली, 'बच्चा आप दोनों की तरह ही खूबसूरत है , थोड़ा सा कमजोर है इसलिए हमने अभी ऑब्जरवेशन में रखा है।' 'कोई चिंता वाली बात तो नहीं है ना ? ' इसबार मनीष की माँ बोलीं जो अब तक सारी बात सुन रही थीं। 'नहीं नहीं कोई चिंता की बात नहीं है एक से दो घंटे में हम दोनों को रूम में शिफ्ट कर देंगे' डॉक्टर ने कहा और वहां से चली गयी।
लगभग तीन घंटे के बाद प्रेरणा प्राइवेट रूम में लेटी थी और बच्चा बगल में सो रहा था। मनीष प्रेरणा के सिर के पास बिस्तर पर ही किनारे बैठा था, प्रेरणा की माता जी बिस्तर के बगल में कुर्सी पर बैठी थीं और कमरे में रखे सोफे पर मनीष के माता पिता और प्रेरणा के पिता बैठे थे। मनीष की चचेरी बहन सुमन भी थोड़ी दूर दिवार के सहारे खड़ी थी। सुमन 12वीं कक्षा में थी और गाँव में अच्छा स्कूल ना होने के कारण अपने ताऊ-ताई के घर रह कर पढाई कर रही थी। सभी खुश थे , प्रेरणा को होश तो आ गया था पर कमजोरी की वजह से उठ नहीं पा रही थी इसलिए लेटी हुई थी। ख़ामोशी तोड़ते हुए प्रेरणा की माँ ने मनीष की माताजी की ओर देखते हुए कहा, 'अरे नयी नवेली दादीजी अपने पोते का नाम क्या सोचा है ?' मनीष की माताजी हँसते हुए बोलीं, 'नहीं नहीं बहनजी ये हक़ तो उसके माता पिता का है इसलिए वो ही नाम तय करेंगे।‘ इससे पहले कि कोई कुछ कहता सुमन तपाक से बोली 'प्रेम, भाभी इसका नाम प्रेम रख दो, इसमें आप दोनों का नाम आ जायेगा। ' प्रेरणा मुस्कुरा कर बोली , 'सच में बहुत प्यारा नाम है, क्यों आप क्या कहते हैं ?' उसने मनीष की ओर देखा। मनीष हँसते हुए बोला , 'मेरी इतनी हिम्मत कहाँ है जो ननद और भाभी के फैसले के बीच में आऊं। ' सभी जोर से हंसने लगते हैं, सुमन बच्चे के माथे पर एक चुम्बन लेते हुए कहती है , 'स्वागत है मेरे प्रेम।' मनीष की माँ सुमन से कहती हैं , ' सिर्फ स्वागत से काम नहीं चलेगा , अब तक तेरी भाभी तेरा ख्याल रखती थी अब तेरी भाभी और प्रेम का ख्याल रखने की जिम्मेदारी तेरी है। ' 'आपका हुक्म सर आँखों पर ताई जी ' सुमन ने थोड़ा स्टाइल में कहा और हंसने लगी।
दो दिन के बाद प्रेरणा को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी और वो घर आ गयी। अब सुमन के पास बस दो ही काम थे, प्रेरणा और प्रेम का ख्याल रखना और अपनी पढ़ाई करना। वो पढ़ती भी तो भाभी के कमरे में ही प्रेम के बगल में बैठ कर। प्रेम अगर रो भी रहा हो तो सुमन की गोद में आते ही चुप हो जाता था। ऐसे ही समय बीत रहा था, सुमन ने अपना इंटरमीडिएट पूरा कर लिया और पापा से जिद करके वहीँ कॉलेज में बी एस सी में दाखिला ले लिया और आगे की पढाई शुरू कर दी। सुमन के स्वाभाव की वजह से सभी उसे स्नेह करते थे। चूँकि प्रेरणा घर के कामों में ही व्यस्त रहती थी, इसलिए प्रेम ज्यादातर समय सुमन के पास ही रहता था और इसीलिए शायद उसका लगाव भी सुमन के साथ बहुत ज्यादा था।
सुमन ने बी. एस. सी. पूरा कर लिया था पर वो गाँव नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि उसे पता था वहां पहुँचते ही उसकी शादी की तैयारी शुरू हो जाएगी। सुमन ने भाभी को तैयार किया उसकी सिफारिश के लिए। प्रेरणा नें सुमन के पापा से बात करके उन्हें सुमन की आगे की पढाई के लिए राजी कर लिया। सुमन बहुत खुश थी , मनीष ने उसका दाखिला एम. एस. सी. में करवा दिया। प्रेम अब स्कूल जाने लगा था तो सुबह उसे स्कूल के लिए तैयार करना और स्कूल वैन में बैठना सुमन की ही जिम्मेदारी थी। प्रेम स्कूल से लौट कर सीधा सुमन के पास ही जाता था जैसे उसके लिए सुमन ही सबकुछ है। ऐसे ही दो और साल बीत गए और सुमन की पढाई पूरी हो गयी अब उसके पास यहाँ रुकने का कोई बहाना नहीं बचा था सो कुछ ही दिनों में उसके पापा आकर उसे ले गए, जाते हुए वो बहुत दुखी थी और प्रेम भी बहुत रोया। सुमन गाँव पहुँच गयी पर उसका मन नहीं लग रहा था। कुछ चार - पांच दिन ही हुए थे कि शहर से फ़ोन आया और पता चला कि प्रेम की तबियत बहुत ख़राब है और वो सुमन को बहुत याद कर रहा है। सुमन की ताई ने सुमन के पापा से कहा कि एक बार उसे शहर ले आएं। सुमन भी बहुत बेचैन थी और वो जाने की ज़िद करने लगी। आख़िरकार उसके पापा उसे लेकर शहर आ गए। सुमन पागलों की तरह भाग कर उससे लिपट गयी ,प्रेम के चेहरे पे भी सुमन को देखते ही ख़ुशी दिखने लगी। दो तीन दिन में सुमन की देखभाल में प्रेम बिलकुल ठीक हो गया। ताई ने सुमन के पापा को कहा वो उसे यहीं छोड़ दें क्योंकि प्रेम उसके बिना रह नहीं पायेगा। उन्होंने सुमन की शादी की जिम्मेदारी भी ले ली। उनका मानना था की जितने दिनों में हम सुमन की शादी ढूँढेंगे उतने ही समय में साथ साथ हम प्रेम को भी धीरे धीरे समझा लेंगे। लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्योंकि समय के साथ प्रेम का लगाव सुमन के साथ बढ़ता ही जा रहा था।
एक दिन सभी बैठक में बातें कर रहे थे तभी सुमन की ताई ने कहा , 'अब कुछ दिनों में सुमन भी शादी करके चली जाएगी। ' तभी अचानक से प्रेम बोल पड़ा , 'नहीं दादी सुमन बुआ कहीं नहीं जाएगी, मैं उसके बिना कैसे रह पाउँगा? ' इस पर वो बोलीं , 'शादी तो एक ना एक दिन सबकी होगी सुमन बुआ शादी करके अपने घर जाएगी और जब तुम बड़े जाओगे तो तुम शादी करके अपनी बहु लेकर आओगे। ' 'नहीं सुमन बुआ किसी से शादी नहीं करेगी, वो कहीं नहीं जाएगी। मैं सुमन बुआ से शादी करूँगा। ' प्रेम के मुँह से ये सुनकर थोड़ी देर के लिए सन्नाटा हो गया। सुमन ने घबरा कर प्रेम को देखा, वो उसकी ओर ही देख रहा था, फिर उसने सबको देखा, सब प्रेम को घूर कर देख रहे थे। सुमन ने सिर नीचे कर लिया। प्रेरणा ने थोड़ा गुस्से में कहा , 'क्या कह रहे हो प्रेम, ये सब गन्दी बातें कहाँ से सीख कर आते हो ?' दादी ने प्रेरणा को शांत करते हुए कहा , 'अरे बेटा वो बच्चा है, उसे क्या मालुम ये सब, बच्चे अक्सर ऐसे बोल देते हैं इस पर इतना ध्यान मत दो ।'
कुछ दिनों के बाद सुमन की ताई ने उसे कुछ लड़कों की तस्वीर दी और कहा , 'ये कुछ तस्वीरें आयी हैं तेरी शादी के लिए, देख अगर कोई पसंद है तो ' सुमन ने चुपचाप सारी तसवीरें रख ली। थोड़ी देर के बाद वो प्रेरणा के पास जाकर धीरे से बोली ,'भाभी मैं अभी शादी नहीं करना चाहती। ' प्रेरणा ने उसे प्यार से अपने पास बैठाया और कहा , 'देखो सुमन मैं समझ सकती हूँ, किसी भी लड़की के लिए ये एक कठिन निर्णय होता है, एक नयी जगह पर नयी जिंदगी शुरू करना सोच कर थोड़ी घबराहट होती है। लेकिन हम इससे भाग नहीं सकते और जो होना ही है वो सही समय पर हो तो अच्छा है। आज उम्र के जिस दौर से तुम गुजर रही हो उसमें तुम्हें ये सब थोड़ा मुश्किल लग रहा होगा, लेकिन यकीन मानो हम बड़े तुम्हारे भले के लिए ही सोच रहे हैं और कुछ समय के बाद तुम्हें भी समझ आ जायेगा कि यही सही है। ' अचानक सुमन की नजर प्रेम पर पड़ी जो दरवाजे पर खड़ा था और शायद सारी बातें सुन रहा था। सुमन उठ कर खड़ी हो गयी और बोली , 'ठीक है भाभी, मैं एक बार इस बारे में सोचती हूँ। ' इतना कहकर वो कमरे से चली गयी और प्रेम अंदर आ गया। प्रेम थोड़ा नाराजगी के साथ बोला , ' मम्मी आपलोग सुमन बुआ की शादी के पीछे क्यों पड़े हैं, मैंने कहा ना कि वो मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती और अगर शादी करना इतना ही जरुरी है, तो मैं शादी करूँगा उनसे। ये बात मैं बिलकुल होशोहवास में बोल रहा हूँ, कोई बचपना नहीं है। ' इससे पहले की प्रेरणा कुछ बोल पाती प्रेम वहां से चला गया।
प्रेम ने कमरे से बाहर आ कर दाईं ओर देखा वहां सुमन खड़ी थी, उसे देख कर प्रेम मुस्कुराया और चला गया।
थोड़ी देर के बाद सुमन प्रेम को पढ़ाने लगी, कमरे में कोई नहीं था। सुमन चुपचाप सिर नीचे करके किताब में देख रही थी और जब उसने सिर ऊपर उठाया, तो प्रेम उसकी ओर ही देख रहा था। सुमन ने किताब बंद की और प्रेम से बोली , ' प्रेम तुमने भाभी से ऐसी बात क्यों बोली ?' प्रेम ने बहुत गंभीर हो कर कहा , 'क्या आप को सच में नहीं पता, कि मैंने ऐसा क्यों कहा या आप अनजान बनने की कोशिश कर रही हैं ?' सुमन अब थोड़ा सख्त लहजे में बोली , ' देखो प्रेम तुम जैसा सोच रहे हो वैसा नहीं सकता और ये गलत भी है इसलिए अच्छा होगा तुम सब भूल जाओ और जो हो रहा है होने दो। ' प्रेम ने व्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, 'तो क्या आप मेरी आँखों में आँखें डाल के बोल सकती हो, कि आप सब कुछ भूल चुकी हो ? अगर हाँ, तो मैं भी भूल जाऊंगा। ' सुमन की आँखों में आँसू आ गए, 'मुझे कुछ नहीं पता, बस मैं इतना जानती हूँ, की जो तुम सोच रहे हो, वैसा नहीं हो सकता। ' इतना कहते हुए वो कमरे से चली गयी।
रात में प्रेम अपने दादाजी के कमरे के पास से गुजर रहा था, तभी कुछ सुन वो रुक गया। प्रेम की दादी , पापा और मम्मी वहीँ थे और वो लोग सुमन और प्रेम के बारे में बात कर रहे थे। दादाजी ने सारी बात सुनने के बाद कहा , 'प्रेम अभी छोटा है, उसे समझाना मुश्किल होगा इसलिए मैं सुमन को समझा कर उसके घर छोड़ आता हूँ। कुछ दिन सुमन से अलग रहेगा तो सब कुछ भूल जायेगा। ' प्रेम भाग कर सुमन के कमरे में गया और उसका हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए उसको दादाजी के कमरे में लेकर आ गया। सभी दोनों को अचानक देख कर चौंक गए और सुमन भी घबराई हुई थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। प्रेम ने बोलना शुरू किया , 'आप सबलोग जो बातें कर रहे थे, मैंने सब सुन लिया है, इसीलिए मैं इन्हे लेकर यहाँ हूँ। मैं आप लोगों को कुछ बताना चाहता हूँ। देखिये आप लोग जो करने की सोच रहे हैं वैसा अगर हो गया तो आप हमें हमेशा के लिए खो देंगे। प्रेम और सुमन साथ थे, साथ ही रहेंगे और अगर कोई हमें अलग करेगा तो दुबारा एक साथ अपनी जान दे देंगे। ' मनीष गुस्से के साथ बोला , ' ये सब क्या बकवास कर रहे हो, तुम्हें पता भी है कि तुम बोल क्या रहे हो ? और ये दोबारा का क्या मतलब है?' प्रेम ने सुमन की ओर देखा, दोनों की आँखें आंसुओं से भीगी थीं।
प्रेम ने बताना शुरू किया , ' पापा पता नहीं आप को मेरी बात पर कितना यकीन आएगा, मगर ये सच है। पिछले जन्म में, मैं और सुमन एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन मैं एक छोटी जात का लड़का था इसलिए सुमन के माँ बाप उसकी शादी मेरे साथ करने को तैयार नहीं थे और उन्होंने जबरदस्ती सुमन शादी अपनी जात के लड़के से करने की कोशिश करी और जब हमें कोई रास्ता नहीं सूझा तो हमने एक साथ एक पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दी और मरते समय एक दुसरे को वचन दिया, कि हम फिर मिलेंगे। अगले जन्म में इत्तेफ़ाक़ से सुमन का नाम उसके माता पिता ने सुमन ही रख दिया और जब मैं पैदा हुआ तो सुमन ने मुझे पहचान लिया और मुझे मेरा पुराना नाम दे दिया 'प्रेम', इस तरह हम दोबारा मिल गए। जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरे पिछले जन्म की सारी बातें मुझे याद आ गयीं। ' सभी असमंजस और आश्चर्य से प्रेम की ओर देख रहे थे। तभी दादाजी बोले , 'सच कहूँ तो मुझे ये पुनर्जन्म वगैरह मैं कोई विश्वास नहीं है, लेकिन मुझे कुछ ऐसी बात याद आ रही है, जो तेरी बात को सच साबित रही है। सुमन का नाम इत्तेफाक से नहीं रखा गया था और ना ही उसका नाम उसके माता-पिता ने रखा था। जब वो पैदा हुई तो हमारे पंडित जी ने कहा था 'इस लड़की का नाम सुमन ही रखना, यही नाम इसके लिए शुभ होगा' और इसके चलते हमने इसका नाम सुमन रख दिया। अब लगता है की शायद भगवान इसका नाम सुमन ही रखना चाहते थे। ' थोड़ा रुक कर वो दोबारा बोले , 'लेकिन अगर हम तुम्हारी सारी बातें सच भी मान लें, तब भी इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर सकते। एक तो तुम्हारे बीच इस जन्म का रिश्ता और दूसरा तुम दोनों की उम्र का अंतर , तुम ही बताओ कैसे संभव है?' प्रेम ने एक निगाह सुमन की और देखा और कुछ सोचते हुए मुस्कुरा दिया। 'दादाजी की क्या अगर दो लोग प्यार करते हों और साथ रहना चाहते हों, उनमें एक ही रिश्ता हो सकता है ? क्या दो लोग, किसी और रिश्ते के साथ नहीं रह सकते? हम बुआ भतीजे हैं और इसी रिश्ते के साथ हम साथ-साथ रहेंगे अब तो आप लोगों को कोई ऐतराज नहीं होगा ?' प्रेम ने दादाजी की तरफ देखते हुए कहा। एक आठ साल के बच्चे के मुँह से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुन कर सब हतप्रद थे, प्रेम की दादी जो अब तक सब सुन यही थीं बोलीं , 'जितना आसान ये सुनने में लगता है, उतना है नहीं , जब सुमन की उम्र बढ़ेगी और उसकी शादी नहीं होगी तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे, हम किस-किस को समझाएँगे। नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ' प्रेम फिर बोला 'लोगों की परवाह किसे है ? मैं...' लेकिन प्रेम की बात बीच में काटते हुए सुमन बोली , 'प्रेम, ताई जी ठीक कह रही हैं, बुआ और भतीजा साथ रहेंगे, तो लोग सवाल उठाएंगे, लेकिन ' थोड़ा रुक कर दोबारा उसने अपनी बात पूरी की , 'अगर एक माँ और बेटा साथ रहें, तो कोई सवाल नहीं उठा सकता ' प्रेम की दादी बोलीं , ' ये क्या कह रही हो सुमन ?' सुमन बोली , 'मैं बिलकुल वही कह रही हूँ, जो मैं कहना चाहती हूँ। मैंने आज तक प्रेम को बेटे की तरह ही पाला है और आगे भी पालती रहूंगी। जैसे कान्हा को देवकी माँ के साथ यशोदा माँ ने बराबरी से पाला वैसे ही मैं और भाभी दोनों प्रेम को माँ की तरह पालेंगे। रही बात लोगों की, उनका मुँह बंद रखने के लिए मैं कानूनी तौर पर प्रेम को गोद लूंगी। ' पहली बार में किसी को ये बात हज़म नहीं हुई मगर धीरे धीरे ये समझ में आने लगा कि इस उलझन को सुलझाने का और कोई तरीका नहीं है। कानूनी तौर पर सुमन ने प्रेम को बेटे के रूप में गोद ले लिया और प्रेम ने पूरी जिंदगी अपनी दोनों माँओं को बराबर का प्यार और सम्मान दिया।
सुमन ने अपने प्रेम के लिए अपने प्यार को नया रूप दे दिया पर उसे अपने से अलग ना होने दिया ठीक उसी तरह जैसे मीरा ने अपने श्याम के प्यार को भक्ति का रूप दे दिया और अपने आप की उनसे सदा के लिए जोड़ लिया।