समय बदल गया | जमाना बदल गया | आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाने के 25 साल बाद एक नए मिडिल क्लास का उद्भ्य इस देश में हुआ | हर क्षेत्र में कामकाज करने का तरीका बदल गया |ग्लोबलाइजेशन से निकली उर्जा और काम करने की नई तकनीक देश के हर कोने में पंहुचा | कार्य करने की नयी पद्धति ने सबको अपने आप में समेट इस देश को नये वर्ग को उभारा | लिब्रेलाईजेशन, ग्लोबलाइजेशन और उद्योगीकरण ने पुराने घिसे पिटे काम करने के तरीके को बदल कर रख दिया |

लेकिन आज भी हम सामाजिक कार्यकर्ता नहीं बदले | हम अपने ढरे पर ही चलते रहे | आज भी हम अपने दशको पुराने तौर तरीका को ढोते हुए अपना काम कर रहे हैं | और जब हम बंद कमरे में बैठते हैं तो हमें इस बात का एहसास होता है कि नयी पीढ़ी हम से नहीं जुड़ पा रही है | हमारी बातें नयी पीढ़ी के लिए कोई मायने नहीं रखती और हम कितना भी उर्जा लगाते हैं लेकिन हमारे साथ युवा आने को तैयार नहीं हैं | हमारी सारी सही बातें उन्हें हमारी तरफ खींच पाने में असमर्थ होता है और हमारी उर्जा व्यर्थ ही इन्हें अपनी ओर आकर्षित करने में जाया होती है |

ग्लोबलाइजेशन के बाद जब से हमने प्रशन उठाना शुरू किया की हमारे सरकारी कर्मचारी भ्ररष्टाचार करते हैं, हमारा नरेगा में भ्ररष्टाचार है, हमारा राशन व्यवस्था में धांधली है, तो हम इस बात को भूल गए की नई हवा ने हमारी अर्थ्वाव्यस्था पर काफी असर डाला है | आज के समय में इन बातो को हमारी सरकार बड़े चाव से हमारा राय बता इसका समाधान बाजार के अर्थव्यवस्था में ढूंढती है और हम अपने को एक किनारे खड़े हाथ मलते हुए अपने पाते हैं |

प्रशन ये है कि जब भ्ररष्टाचार के नाम पर हमने मनरेगा को बर्बाद होते हुए देखा, राशन के बदले नगद देने की बात हो रही है और इसको खत्म करने के नाम पर सरकार इन योज़नाओं को बाजार, बैंक और टेक्नोलॉजी कंपनियों के हवाले करटी जा रही है " हमारी मांग के अनुसार इन योज़नाओं की बेमौत मौत भी हमारी ही हाथो से हुआ " | इसी को देखते हुए अब हमें अपनी रणनीति को बदल कर सब चीजों को संगठित तौर पर देखने की जरुरत है ताकि आने वाले समय में हम बाजार के चाल में न फसें और इस व्यवस्था में अपने आप को ढालते हुए लॉन्ग टर्म साल्यूशन की बात करें जिससे देश के मुख्यधारा वाले आबादी को फायदा पहुंचे |

Tags: Politics

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