होगा विकास, अगर आप गाँववालो की सारी जमीन छीन कर किसी पूंजीपति कि दे देते हैं तो जरुर विकास होगा | बंजर भूमि जो ज्यादातर एक फसलिये होता है उसमें पंपसेट लगेगा | खाद बीज और नए तकनीक के इस्तेमाल से उस भूमि में ज्यादा पैदावार होगा | फसल का पैदावार बढेगा, लोगो को रोजगार मिलेगा और देश को फायदा होगा, देश के लिए पूंजी का निर्माण होगा |
परन्तु अगर हम उसी सारी जमीन को गांववाले के पास ही रहने दे और उन्हें सिचाईं सुविधा उपलव्ध करवाएं तो भी विकास होगा | जमीन गाँव के गरीब लोगों के पास रहेगी और लोग अपने खेत में मेहनत करेंगे | गाँव के लोगों के पास पूंजी का संचयन होगा और गरीब लोग मजदूर के बदले सम्पन किसान बनेंगे | विकास इस परिस्थिती में भी होगा |
पहले केस में " कोटा राजस्थान में सहरिया आदिवासीयों का हाल "
गाँव के लोग मजदूर बन जायेंगे | लेकिन तीव्र विकास होगा और पूंजी का निर्माण होगा | और इस पूंजी से पूंजीपति कार खरीदेंगे, उनके बच्चे विदेश में पढेंगे | जीडीपी वाले विकास में तीब्र बढ़ोतरी होगी |
दुसरे केस में " बरबानी मध्यपर्देश में बारेला आदिवासियों में आयी सम्पनता "
गाँव गाँव में सम्पनता आयेगी | घर घर में मोटरसाइकिल, टीबी, फ्रीज बिकेगी | कोई मजदूर नहीं बनेगा और आमलोगों के घरो में खुशहाली आयेगी | गाँव वालो के बच्चे स्कूल में पढेंगे और गाँव में सम्पनता आयेगी | जीडीपी वाले विकास की गति थोड़ी धीमी होगी परन्तु चहमुखी विकास होगा | कोई मजदूर नहीं बनेगा | भूख, कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी में भारी कमी होगी | और मनरेगा ने यही काम किया, अदिवासीयों, छोटे किसान के हाथों में पूंजी बनाइ और विकास गाँव-गाँव पहुंचा |
अब बहस इसी दो विकास के धारा को लेकर है | सत्ता में बैठे लोगों को पहला रूप फायदेमंद और आसान दिखता है और इसे आमजन पर थोपने का प्रयास करते हैं | लेकिन हमलोग हमेशा दूसरे रूप को लेकर संघर्ष करते रहते हैं | एक संवेदनशील राष्ट्र के लिए विकास में आम जन की हिस्सेदारी और रिसोर्सेज पर आम जन का कब्जा ज्यदा महत्वपूर्ण है | हम इसी परिकल्पना को जमीन पर उतारने के लिए अनवरत संघर्ष करते रहें हैं | यह संघर्ष सदियों से चलता आ रहा है और इस मनुष्य लोक में सदियों तक अनवरत चलता रहेगा | धुर समाजबाद के समर्थक होने के नाते हमें यह संघर्ष जारी रखना होगा |